Tag Archives: समाज

मां को बिछड़ा बेटा मिला

एक मां को बिछड़ा बेटा मिल गया और एक बेटे को बिछड़ी मां मिल गयी। पढ़ कर भावुक हो गया हूँ। हज़ारों बच्चे अपने मां बाप से बिछड़े, पर उनमें से बहुत फिर कभी मिल नही पाये। गणेश को बहुत बधाई कि अंततः वह अपनी मां के चरणों तक पहुँच पाया। फिर भी, मैं यह महसूस कर सकता हूँ कि २३ साल तक अपने आप को ‘अनाथ’ समझ कर जीना उसे कैसे लगा होगा।

http://aajtak.intoday.in/story/lost-son-returned-after-23-year-as-a-cop-1-744762.html

सामाजिक नियम सदा बदलते रहते हैं

(अमृत पाल सिंघ ‘अमृत’)

चंदू दिल्ली के बादशाह जहाँगीर के वक़्त मुग़ल दरबार में एक उच्च अधिकारी था। अपनी बेटी की सगाई सिक्खों पांचवें गुरु, श्री गुरु अर्जुन देव जी के सपुत्र श्री (गुरु) हरगोबिन्द जी से होने के बाद उस ने गुरु साहिब के बारे में कुछ अपमानजनक टिप्पणियाँ की। वहाँ मौजूद कुछ सिक्खों ने यह सुना और ख़ुद को अपमानित हुया महसूस किया। उन्होने गुरु जी को कहला भेजा कि यह रिश्ता स्वीकार न किया जाये। गुरु अर्जुन देव जी ने वही किया, जो सिक्ख चाहते थे।

चंदू की बेटी और (गुरु) हरगोबिन्द साहिब जी की कभी भी आपस में शादी न हुई। जैसा कि उन दिनों कथित ऊंची जाति के हिन्दू समाज में प्रचलन था, चंदू की बेटी अपनी मौत तक बिन-ब्याही ही रही।

उन दिनों में, कथित ऊंची जाति की हिन्दू औरत को यह कतई मनज़ूर न था कि एक बार किसी एक मर्द से उसका नाम जुडने के बाद वह किसी और मर्द के बारे में सोचे भी। एक बार किसी के साथ किसी औरत की सगाई हो जाने के बाद कोई और मर्द उस से कभी शादी न करता, अगर उस की सगाई टूट भी जाए। ऐसे नियम थे समाज के तब।

उन दिनों किसी हिन्दू विधवा के लिए दुबारा शादी कर लेना असम्भव था। सिक्ख गुरुओं ने विधवाओं की शादी को उत्साहित किया, ताकि वे नये सिरे से अपनी ज़िन्दगी शुरू कर सकें। यह सामाजिक नियमों में लाया गया इरादतन बदलाव था।

आजकल हम देख सकते हैं कि परंपरागत भारतीय समाज ने अपने आप को किस तरह से बदल लिया है। टूटी हुई सगाईयाँ, यहाँ तक कि टूटी हुई शादियाँ भी अब लड़कियों के लिए शर्मिंदगी की वजह नहीं रहीं, चाहे कि अब भी बहुत से ऐसे लोग हैं, जो इन बदलावों से ख़ुश नहीं हैं।

एक सोश्ल नेटवर्क वैबसाइट पर मैंने एक मैसेज पढ़ा, जो कुछ ऐसे था:

पहले लड़कियां कहा करती थीं, “मैंने पहले बी॰ ए॰ वन पास की, फिर बी॰ ए॰ टू, और फिर बी॰ ए॰ फ़ाइनल की। या, मैंने पहले बी॰ कॉम॰ वन पास की, फिर बी॰ कॉम॰ टू, और फिर बी॰ कॉम॰ फ़ाइनल। या, मैंने पहले बी॰ एस॰ सी॰ वन पास की, फिर बी॰ एस॰ सी॰ टू, और फिर बी॰ एस॰ सी॰ फ़ाइनल की”। आजकल की लड़की कहती है, “मैंने पहले पहली सगाई की, फिर दूसरी सगाई की, और फिर फ़ाइनल सगाई की”।

चाहे सामाजिक तौर पर इज़्ज़तदार कई परिवार अब भी अपनी किसी बेटी की सगाई टूट जाने को अपनी बेइज्ज़ती के तौर पर लेते हैं, दूसरे इस को कुछ ज़्यादा तवज्जो नही देते। कुछ लड़कियां अब तो तीन-तीन बार भी शादियाँ करा रही हैं और साधारण समाज ने उन्हें लगभग स्वीकार भी किया है।

यह ख़बर तो अब पुरानी हो चुकी है कि मुंबई की एक अदाकारा ने बिना शादी किए ही एक विदेशी क्रिकेटर के बच्चे को जन्म दिया। बहुत से लोग ‘लिव-इन’ रिश्ते को तरजीह देने लगे हैं, चाहे कि भारत के एक बड़े हिस्से में इसे सामाजिक मान्यता नही मिली है।

परंतु, लगता है कि सामाजिक नियम अब एक बड़े परिवर्तन की और जा रहे हैं। भारत की सूप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में ‘लिव-इन’ रिश्तों के लिए कुछ दिशा-निर्देश दिये हैं, जिस से कि ‘लिव-इन’ रिश्तों में भी औरतों को सुरक्षा दी जा सके। सूप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ‘लिव-इन’ रिश्ते न तो अपराध हैं और न पाप, और संसद को चाहिए कि वह ऐसे रिश्ते में रह रही औरतों और ऐसे रिश्तों से पैदा होने वाले बच्चों की सुरक्षा के लिए कानून बनाए।