वर्तमान बहु-पति प्रथा

(अमृत पाल सिंघ ‘अमृत’)

महाभारत की कथा है कि द्रौपदी के पांच पति थे. ये पांच पति पाण्डव थे, जो आपस में भाई लगते थे. इस तरह, द्रौपदी पाँच पतियों की पत्नि थी.

यह तो थी महाभारत की कथा. जब मैं देहरादून (उत्तराखण्ड राज्य) में रहता था, तो जौनसार-बावर इलाके की लडकियों से सुनता था कि उन के इलाके में ऐसा रिवाज़ था कि कई भाईयों की एक सांझा पत्नि होती है. हालाँकि ऐसा रिवाज़ समय के साथ-साथ लगभग समाप्त होता जा रहा था.

परन्तु, अभी-अभी हरियाणा राज्य के एक सब-डिविज़नल जुडिशल मैजिस्ट्रेट डा. अतुल मारिया ने इन्क्शाफ किया है कि हरियाणा के डबवाली (सिरसा) क्षेत्र में ऐसा देखने में आ रहा है कि किसी औरत की शादी तो किसी और के साथ होती है, पर रहती वह अपने किसी देवर या जेठ के साथ है. ऐसे भी वाकयात हैं, जहाँ एक औरत एक ही समय में दो या दो से भी अधिक मर्दों के साथ रहती है. ये मर्द आपस में सगे भाई ही होते हैं. (देखो: http://www.tribuneindia.com/2011/20110815/haryana.htm#8)

बीते समय में पंजाब में भी ऐसा देखने को मिलता था कि अपनी भूमि की बाँट को रोकने के लिए कई परिवारों में सिर्फ एक ही भाई की शादी की जाती थी. यह भी, अप्रत्क्ष रूप में बहु-पति प्रथा का ही दोहराव था.

आखिर, ऐसी प्रथा वर्तमान समय में भी क्यों चल रही है? क्यों बहु-पति प्रथा फिर से आगे आ रही है?

असल में, बेटे की लालसा कई लोगों में इतनी बढ़ चुकी है कि वे गर्भ में ही बेटियों की हत्या करने से भी सँकोच नहीं करते. पैदा होते ही बेटियों को जान से मार दिया जाता है. बेटियों की देखभाल, खुराक आदि में कमी की जाती है. नतीजा यह निकला है कि भारत में लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या में बहुत अन्तर देखने को मिल रहा है. सिरसा में ६ साल तक के बच्चों में १००० लड़कों के मुकाबले सिर्फ ८५२ लडकियाँ हैं. ज़ाहिर है कि १४८ लड़के ऐसे होंगे, जिनके लिए दुल्हन नहीं मिलेगी. ऐसी स्थिति में इस के सिवा और कोई रास्ता नही होगा कि दो या दो से अधिक लड़के किसी एक लड़की से शादी करें.

चाहे बहु-पति प्रथा भारत के कई हिस्सों में प्रचलित रही है और इसके कई सामाजिक, आर्थिक और परम्परागत कारण रहे हैं (देखो: http://www.articlesbase.com/weddings-articles/polyandry-a-social-system-in-india-now-state-of-disappearance-257364.html), परन्तु वर्तमान में हरियाणा आदि में ध्यान में आये बहु-पति प्रथा के इन रुझानों के पीछे एक ही कारण लड़कियों की तेज़ी से कम हो रही संख्या ही है.

इस से पहले कि बहुत देर हो जाये, यह बहुत आवश्यक है कि लोगों को लड़कियों की कम हो रही संख्या के बारे में जागरूक किया जाये और ऐसा यकीनी बनाया जाये कि लड़कियों और लड़कों की संख्या का अनुपात लगभग बराबर रहे. नहीं तो, आने वाले समय में समाज में कई प्रकार की विकृतियाँ पैदा हो जाएँगी, जो कि लम्बे समय तक भी ठीक नहीं की जा सकेंगी. आओ, बेटियों को बचाएँ, समाज को बचाएँ, खुद को बचाएँ…