(भाग 3/3) लाहौर में हिन्दू सिखों का कत्लेआम । पाकिस्तान की स्थापना ।

#ख़ून_से_लेंगे_पाकिस्तान ।
#पाकिस्तान_की_स्थापना ।
#हिन्दू_सिख_क़त्लेआम ।

मेहरबानी करके पूरी विडियो देखें/सुनें। इस विडियो के कुछ नुक्ते इस प्रकार हैं: –

* गुण्डे, मुस्लिम नेशनल गार्ड्स, और बाउंडरी फ़ोर्स का ही हिस्सा बलूच मिलिट्री ने लाहौर की गलियों में हिन्दुओं और सिखों का बाक़ायदा ऐसे शिकार किया, जैसे पिछले दौर में राजा-महाराजा अपने ख़ास फ़ौजियों के साथ जँगलों में जाकर जानवरों का शिकार किया करते थे। मज़हबी बुनियाद पर दिलों में नफ़रत भर कर बैठे ये लोग हिन्दू को भेड़ और सिख को सूअर कहते थे। गुण्डे, मुस्लिम नेशनल गार्ड्स, और बलूच मिलिट्री के लोग अपने हिसाब से इन्सानों का नहीं, बल्कि भेड़ों और सूअरों का शिकार कर रहे थे।

* लाहौर की गलियों में, सड़कों पर, और रेलवे स्टेशन पर, हर जगह ही अपनी जान बचाने के लिये लाहौर छोड़कर भागने की कोशिश करते ये हिन्दू सिख वक़्त के ख़िलाफ़ पहले से ही हारी हुई लड़ाई लड़ रहे थे। लाहौर की गलियों में, लाहौर की सड़कों पर गाजर-मूली की तरह काटे गये हिन्दुओं और सिखों की लाशें इधर-उधर बिखरी पड़ी थीं। कितने दिनों तक हिन्दुओं और सिखों की लाशें लाहौर की गलियों और सड़कों में पड़ी-पड़ी सड़ती रहीं। कौन करता उनका अन्तिम संस्कार? वहां उनका हमदर्द था भी कौन?

* कुछ लाशों के संस्कार लाहौर के बाक़ी बचे हिन्दुओं और सिखों ने अपनी गलियों में ही कर दिया था। शमशान में भी इतनी लाशें जलाने की जगह कहाँ थी? शमशान तक कोई लाश ले भी जाते, तो गुण्डे लाश को श्मशान तक लेकर आये लोगों को भी लाशों में बदल देते। एक-एक चिता में दो-दो, तीन-तीन लाशें रखकर भी जलाई गई थीं। आख़िर इतनी लकड़ियाँ भी तो कहाँ से लाते?

* आज के हिन्दू और सिख तो अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते कि उन दिनों हिन्दुओं और सिखों पर क्या-क्या बीती थी। लाहौर की गलियों में उन दिनों कितने ही जलियांवाला बाग़ जैसे क़त्लेआम हुये।

* कुछ भाइयों ने कहा है कि मैं दबे मुर्दे उखाड़ रहा हूँ। वो आपके लिये दबे मुर्दे होंगे। मेरे दिल में तो वो अभी तक बसे बैठे हैं।

* मेरी हर बात में मुहब्बत का पैग़ाम है। उन शहीदों के लहू की महक ऋषियों, मुनियों, गुरुओं की इस ज़मीन में इतनी रच-बस गयी है कि इस मिट्टी से उन शहीदों के लहू की ही ख़ुशबु आती है। ऋषियों, मुनियों, गुरुओं, शहीदों की इस धरती की ख़ुशबु लेकर मुहब्बत का ही पैग़ाम दिया जाता है, नफ़रत का नहीं। मुहब्बत का यही पैग़ाम है कि आओ, हम मिलकर कोशिश करें कि फिर से ऐसे क़त्लेआम न हों।

* 12 और 13 अगस्त को भारतनगर, सिंघपुरा, डब्बी बाज़ार, और लोहारी गेट जैसे इलाक़ों में हिन्दुओं और सिखों का शिकार खेला गया। इन दो दिनों में इन इलाक़ों में सैंकड़ों हिन्दुओं और सिखों को उनके घरों से निकाल कर मार दिया गया। 13 अगस्त को लाहौर लोको वर्कशॉप के कुछ हिन्दू वर्कर्स को भी क़त्ल कर दिया गया।

* 13 अगस्त को पूरे लाहौर में कर्फ्यू लगा दिया गया। हिन्दू सिख अपने घरों में क़ैद होकर रह गये। उनके भागने के सभी रास्ते अब बन्द हो गये। हमलावरों के लिये इस कर्फ्यू का कोई मतलब नहीं था। कर्फ्यू के दौरान ही वो हिन्दू सिखों के घरों को आग लगा देते थे। सैंकड़ों हिन्दू और सिख अपने ही जलते हुये घरों के अन्दर राख का ढेर बन गये। सैंकड़ों हिन्दू सिख अपने जलते घरों से जान बचाने के लिये जब बाहर निकले, तो बलूच मिलिट्री और पुलिस की गोलियों का निशाना बना दिये गये।

* वक़्त के मिज़ाज को समझने में नाकाम रहे, जान बचाने की कोशिश करते ये हिन्दू सिख ये नहीं जानते थे कि उनके पास अब भारत जाने की ऑप्शन है ही नहीं। उनको तो अब बस मरना ही है, चाहे अपने ही जलते हुये घरों के अन्दर जल कर मर जायें, चाहे बाहर आकर गोलियों से मरें या चाकू-छुरियों से काटे जायें।

* 4 सितम्बर को रायविंड रेलवे स्टेशन पर हिन्दु सिख refugees की ट्रेन को रोककर उन पर हमला किया गया। इस क़त्लेआम में 300 हिन्दू सिख refugees मारे गये।

* ढोल बजा-बजा कर लाहौर ज़िले के गांवों को घेरकर हिन्दुओं और सिखों पर इस तरह से हमले किये गये, जैसे जानवरों के शिकार के दौरान अब भी करते हैं। ढोल बजा-बजा कर हमले सिर्फ़ लाहौर ज़िले में ही नहीं, बल्कि पंजाब के कई और ज़िलों में भी किये गये थे।

* कसूर शहर की आबादी में मुसलमानों की मेजोरिटी थी, लेकिन इसके आसपास के गाँवों में ज़्यादा आबादी सिखों की थी। बाउंडरी कमिश्मन की रिपोर्ट आने पर जब यह साफ़ हो गया कि कसूर पाकिस्तान के हिस्से में आया है, तो एकदम हिन्दुओं और सिखों का क़त्लेआम शुरू हो गया। कसूर शहर में हिन्दुओं और सिखों के मुहल्लों पर बारी-बारी से हमले किये गये। कसूर शहर और साथ वाले इलाक़ों में दो दिन में ही सैंकड़ों हिन्दुओं और सिखों का क़त्लेआम कर दिया गया।

* कसूर से भाग कर फिरोज़पुर की तरफ़ जाते हुये हिन्दुओं सिखों को सतलुज दरिया के पुल पर कब्ज़ा किये बैठे फ़ौजियों ने फायरिंग कर के मार डाला।

* डंके कलां पर 19 अगस्त को हमला कर के 200 के लगभग हिन्दुओं और सिखों का क़त्लेआम किया गया। 80 से ज़्यादा औरतों और बच्चों को अग़वा कर लिया गया।

* 19 अगस्त को ही एक बड़ा क़त्लेआम हथर गांव से निकल कर भारत जा रहे हिन्दुओं और सिखों के एक काफ़िले का हुया। इसमें औरतों और बच्चों समेत तक़रीबन 1200 हिन्दू और सिखों को जोरेवाला हेड पर क़त्ल कर दिया गया। तक़रीबन 100 औरतों को अग़वा किया गया।

* तलवंडी में मिल्ट्री की मदद से 24 अगस्त को ज़ोरदार हमला किया गया। इस बड़े क़त्लेआम में 400 से भी ज़्यादा हिन्दुओं और सिखों की मौत हुई। बची हुई सभी औरतों को अग़वा कर लिया गया। बहुत थोड़े-से हिन्दू सिख इस गांव के बचे, जो बहुत बुरी हालत में इण्डिया पहुँचे।

* 24 अगस्त को ही जागूवाला पर हमला करके बहुत बड़ा क़त्लेआम किया गया। 1400 हिन्दुओं सिखों में से कोई 50 ही बच सके।

* बुघियाणा कलां और आसपास के गांवों के हिन्दू और सिख पनाह लेने के लिये तलवंडी पहुँचे। हमला होने पर इन्होंने मुक़ाबला किया। यहाँ 600 हिन्दू सिख मारे गये।

* जिया बग्गा गाँव का क़त्लेआम बहुत बड़े पैमाने पर हुआ, जिसमें तक़रीबन 1000 हिन्दू और सिख शरेआम क़त्ल किये गये। यह 27 अगस्त को हुआ था, गान्धी जी की लाहौर यात्रा के 21 दिन बाद।

* 29 अगस्त को जमशेर कलां गाओं पर बहुत बड़ी भीड़ ने बन्दूकों और बरछों से लैस होकर ढोल बजाते हुये हमला कर दिया। हिन्दुओं और सिखों की आबादी इस गांव में 500 थी। हिन्दुओं और सिखों ने समझ लिया कि अब गाँव को छोड़ना ही पड़ेगा। बहुत बुरी हालत में गाँव के सभी हिन्दू सिख अपने घर खुले छोड़ वहां से ख़ाली हाथ निकले। गाँव से निकलने के बाद हिन्दुओं सिखों के इस लगभग 500 के काफ़िले पर हमला कर दिया गया, जिनमें से 50 आदमी, 80 औरतें, और 70 बच्चे शहीद हो गये। लाहौर छोड़ कर न जाने की गान्धी जी की सलाह के 23 दिन बाद यह क़त्लेआम हुआ था।

* 4 सितम्बर को रायविंड रेलवे स्टेशन के पास एक रिफ्यूजी ट्रेन को रोककर तक़रीबन 300 हिन्दुओं सिखों को क़त्ल कर दिया गया।

* सब हिन्दू सिख लाहौर के गाँवों से खाली हाथ भगाये गये। उनको इतना वक़्त भी नहीं मिला कि वो कुछ ज़रूरी सामान अपने साथ उठा लाते। उनको पक्का यक़ीन था कि लाहौर इण्डिया के हिस्से आयेगा।

* एक बार फिर से लाहौर जाने का पहले से ही बना अपना प्रोग्राम गान्धी जी ने 2 सितम्बर को रद्द कर दिया। उनके कहने पर लाहौर में ही रुके रहे हिन्दू और सिख या तो भारत में रिफ्यूजी कैम्प्स में फटेहाल बैठे थे या लाहौर के क़त्लेआम का शिकार हो चुके थे। अब लाहौर में उन्होंने क्या करने जाना था?