#पाकिस्तान_की_स्थापना । #हिन्दू_सिख_क़त्लेआम ।
मेहरबानी करके पूरी विडियो देखें/सुनें। इस विडियो के कुछ नुक्ते इस प्रकार हैं: –
* #पोठोहार में ज़िला रावलपिण्डी के ख़ूबसूरत गाँव #थोहा_ख़ालसा का क़त्लेआम 1947 के ख़ूनी दौर के सबसे मशहूर क़त्लेआमों में से एक है। थोहा ख़ालसा में 93 सिख औरतों ने अपनी इज़्ज़त बचाने के लिये गाँव के कुएँ में कूद कर अपनी जान दे दी थी।
* थोहा ख़ालसा में इन औरतों समेत तक़रीबन 200 सिखों की मौत हुई। यह 12 मार्च, 1947 की बात है।
* इण्डियन नेशनल कांग्रेस से ताल्लुक़ रखने वाली सोशल वर्कर रामेश्वरी नेहरू कुछ साथियों के साथ इस घटना के 18 दिन बाद 30 मार्च को थोहा ख़ालसा पहुंचीं। उन्होंने वहाँ देखा कि सिखों के टूटे पड़े घरों में लाशें पड़ीं थीं। जब वो उस कुँए पर गये, तो वहाँ से इतनी ज़्यादा बदबू आ रही थी कि वहाँ रुकना भी मुश्किल था। जब उन्होंने कुँए में देखा तो उन्हें उन औरतों की लाशें दिखीं, जो पानी से फूल चुकी थीं। दो या तीन औरतों की लाशों के सीने पर तब तक भी छोटे-छोटे बच्चों की लाशें चिपकी पड़ीं थीं।
* हिन्दू और सिख औरतों के कुँयों में कूदकर जान देने के वाक़्यात पोठोहार में कई और जगहों पर भी हुये थे, पर थोहा ख़ालसा का यह उदास वाक़या ही सबसे ज़्यादा मशहूर हुआ था।
* मैंने बहुत बार सोचा कि 1947 में कुंओं में कूदकर या ख़ुद को आग लगा कर जान दे देने वाली उन बहनों और बेटियों के बारे में अपने दिल के उदास ख़्याल किसी मर्सिये के रूप में बयान करूँ। अभी तक ऐसा कुछ ख़ास लिख नहीं पाया, जिसे मैं आप लोगों को सुना सकूँ। उनको ले कर मेरे दिल की उदासी बड़ी गहरी है। अल्फाज़ अभी साथ नहीं दे रहे।
* दिल में एक दबी हुई चाहत है कि कभी थोहा ख़ालसा के उस कुँए के किनारे बैठ कर जी भर के रोयूँ। वहाँ मरी कुँवारी लड़किओं के लिये सुहाग-गीत गाऊँ। उस कुँए में डूब मरे बच्चों के लिये कोई लोरी गाऊँ।
* कूओं से आ रही है जो, किसकी आवाज़ है?
“धर्म पर फिदा हुये हैं, हम को नाज़ है।”