#पाकिस्तान_की_स्थापना । #हिन्दू_सिख_क़त्लेआम ।
मेहरबानी करके पूरी विडियो देखें/सुनें। इस विडियो के कुछ नुक्ते इस प्रकार हैं: –
* पंजाब के दूसरे हिस्सों, या पूरे भारत में कहीं भी मार्च, 1947 में पोठोहार के हिन्दू-सिखों के क़त्लेआम के जवाब में फ़ौरी तौर पर हिन्दुओं या सिखों की भीड़ों ने कोई दंगा नहीं किया। हिन्दुओं या सिखों की भीड़ों ने कोई दंगा दिसम्बर 1946 / जनवरी 1947 में नॉर्थवेस्टर्न फ्रंटियर प्रोविन्स के हज़ारा डिवीज़न में हुये हिन्दुओं-सिखों के क़त्लेआम के बाद भी नहीं किया था। हज़ारा से भाग कर हज़ारों हिन्दू-सिख शरणार्थी पंजाब में ही गये थे। पंजाब की यूनियनिस्ट, कांग्रेस, अकाली कॉलिशन सरकार ने भी और नॉर्थवेस्टर्न फ्रंटियर प्रोविन्स की कांग्रेस सरकार ने भी उस क़त्लेआम की ख़बरों को दबाया ही था, ताकि उनके सूबों में बदअमनी फैलने से उनकी सरकारों को कोई ख़तरा न हो।
* 24 जनवरी को पंजाब सरकार मुस्लिम नेशनल गार्ड्स पर पाबन्दी लगा देती है। मुस्लिम नेशनल गार्ड्स के लाहौर में दफ़्तर की तलाशी के दौरान मुस्लिम लीग के रहनुमा तलाशी का विरोध करते हैं। उनको पुलिस ग्रिफ्तार कर लेती है।
अगले दिन 25 जनवरी को मुस्लिम लीग के लियाक़त अली ख़ान कहते हैं कि नेशनल गार्ड्स मुस्लिम लीग का ज़रूरी हिस्सा है और नेशनल गार्ड्स पर हमला मुस्लिम लीग पर हमला है। उसके अगले दिन 26 जनवरी को मुस्लिम लीग के लाहौर से ग्रिफ्तार किये गये रहनुमाओं पर से केस वापस ले लिये जाते हैं। दो दिन बाद, 28 जनवरी को नेशनल गार्ड्स पर चार दिन पहले लगाई गई पाबन्दी हटा ली जाती है।
* इसका क्या मतलब निकाला जाये? क्या यह मुस्लिम लीग की सियासी जीत नहीं थी? क्या इससे यह साबित नहीं होता था कि यूनियनिस्ट, कांग्रेस, अकाली कॉलिशन सरकार बहुत कमज़ोर थी?
* पंजाब में मिली सियासी जीत ही मुस्लिम लीग के लिये काफ़ी नहीं थी। वो अब एक ख़ूनी जंग जीतना चाहते थे।
* पोठोहार में मार्च, 1947 का हिन्दू-सिख क़त्लेआम पाकिस्तान बनने की तारीख़ की पहली ऐसी ख़ूनी जंग थी, जिसमें आल इण्डिया मुस्लिम लीग, मुस्लिम नेशनल फ्रंट, और उनके हिमायतियों को फ़तह मिली।
* 5 मार्च को रावलपिण्डी में भी हिन्दू और सिख स्टूडेंट्स ने जलूस निकाला। हिन्दू और सिख स्टूडेंट्स के इस जलूस पर पाकिस्तान बनाने के हिमायती लोगों ने हमला कर दिया। हिन्दू और सिख स्टूडेंट्स ने उनका मुकाबला किया। इस के बाद हमलावरों ने रावलपिंडी शहर के अंदरूनी हिस्से पर हमला कर दिया। रावलपिण्डी शहर में हिन्दुओं और सिखों पर हमले 3 दिन तक जारी रहे।
* 7 मार्च को रावलपिंडी ज़िले में तक्षिला रेल्वे स्टेशन पर एक रेलगाड़ी रोक कर हिन्दू और सिख मुसाफिरों को गाड़ी से बाहर निकाल कर क़त्ल कर दिया गया। यहाँ 22 हिन्दू और सिख क़त्ल किए गए।
* रावलपिण्डी के गाँव मुग़ल में 8 मार्च को हमला हुआ। दंगाइयों के लीडर काज़िम खान ने, जो कि ददोछा गाँव का था, क़ुरआन की कसम खायी कि सिखों को क़त्ल नहीं किया जायेगा, अगर वो सरेंडर कर दें। सिखों ने भी गोलियाँ ख़त्म होने की वजह से कोई और रास्ता न देखते हुये काज़िम खान की शर्त मान ली। जैसे ही सिख गुरुद्वारे से बाहर आये, दंगाइयों ने उनपर हमला करके उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिये। कुल 141 सिखों को क़त्ल कर दिया गया। इस गाँव के कुछ ही सिख बच पाये थे। गुरुद्वारा साहिब को जला दिया गया।
* 8 मार्च को ढोल बजाते हुये हज़ारों की तादाद में दंगाइयों की भीड़ ने अडियाला गाँव को घेर लिया। हिन्दुओं और सिखों को उनके घरों से निकाल-निकाल कर या तो ज़िन्दा ही जला दिया, या छुरे मार कर, या गोलियों से क़त्ल कर दिया गया। 40 हिन्दू और सिख अपनी जान बचाने के लिये मुसलमान बन गये।
* 8 मार्च को कहूटा में हुये क़त्लेआम में 60 के क़रीब हिन्दू, सिखों को क़त्ल किया गया। यहाँ बहुत बड़ी तादाद में औरतों को अग़वा किया गया।
* थोहा ख़ालसा जैसा ही एक हादसा बेमली गाँव मे 8 मार्च को हुआ, जहाँ कुछ सिखों ने अपनी औरतों और लड़किओं को हमलावरों के हाथों देने की बजाय ख़ुद ही क़त्ल कर दिया था। यहाँ तक़रीबन 80 सिखों का क़त्लेआम हुआ। 105 लोगों को अग़वा कर लिया गया।