भूल गये राग-रंग । हल्की-फुल्की बातें (Hindi)

(अमृत पाल सिंघ ‘अमृत’)

#हल्की_फुल्की_बातें

लगभग 25-26 साल पुरानी बात है। देहरादून की। स्टूडेंट लाइफ थी। एक सज्जन मेरे होस्टल के पास दुकान करते थे। पंजाबी थे। इसलिये मेरा स्वाभाविक ही उनसे दोस्ताना हो गया।

उन्होंने एक बार मुझे यह पंजाबी में सुनाया:-

भुल्ल गये राग-रंग, भुल्ल गयी चौकड़ी।
तिन्न गल्लां याद रहियां, आटा, लूण, लकड़ी।

हिन्दी में यह कुछ ऐसे होगा:-

भूल गये राग-रंग, भूल गयी चौकड़ी।
तीन बातें याद रहीं, आटा, नमक, लकड़ी।

कुछ दिन बाद मैंने उन्हें यही पंक्तियां सुनाई, पर ‘लूण’ (नमक) की जगह ‘तेल’ बोल गया:-

भुल्ल गये राग-रंग, भुल्ल गयी चौकड़ी।
तिन्न गल्लां याद रहियां, आटा, तेल, लकड़ी।

वह बोले, “तेल नहीं, लूण। ज़िन्दगी जब सबक सिखाने पर आती है, तो आदमी तेल भी भूल जाता है।”

वक़्त बीता। मैंने देहरादून छोड़ दिया और वापिस पंजाब आ गया। बहुत बरसों बाद जब फिर देहरादून गया, तो पता चला कि उनकी मौत हो चुकी थी।

अब जब कोई सब्ज़ी या दाल वगैरह बनाता हूँ, तो सेहत की वजह से तेल या घी बिलकुल नहीं डालता। पर उनकी वह बात बहुत याद आती है, “तेल नहीं, लूण। ज़िन्दगी जब सबक सिखाने पर आती है, तो आदमी तेल भी भूल जाता है।”

भाई, वक़्त ने तो ऐसे-ऐसे सबक़ सिखाये हैं कि मैं नमक भी भूलता जा रहा हूँ।