यह एक कथा है । पाकिस्तान की स्थापना

(अमृत पाल सिंघ ‘अमृत’)

#शरणार्थी_मुद्दे । #पाकिस्तान_की_स्थापना

यह एक कथा है, जो मज़हब के नाम पर रची गई। इसमें ईश्वर, अल्लाह, वाहेगुरु की बन्दगी की बात नहीं होने वाली थी। राम वाले, अल्लाह वाले, वाहेगुरु वाले बस बेचारे-से बन के रह गये थे। हुक्मरान बनने की भूख से तड़प रहे ख़ुदग़रज़ सियासतदानों की चालों की ही तो कथा है यह।

यह एक कथा है, जो बहुतों के लिए बहुत पुरानी है। जो इस कथा के पात्र हैं, उनके लिए यह अभी कल की ही बात है। कहते हैं कि वक़्त रुकता नहीं, लेकिन कभी-कभी किसी-किसी के साथ ऐसा भी हो जाता है कि उसके लिये वक़्त थम-सा जाता है। जैसे बर्फ़-सी जम गयी हो ज़िन्दगी। जैसे किसी ब्लैक-होल में गिर पड़ी हो एक पूरी की पूरी नस्ल। रुक गये किसी वक़्त की ही तो कथा है यह।

कोई अटका हुआ है पल शायद।
वक़्त में पड़ गया है बल शायद।
(गुलज़ार)।

यह एक कथा है उन लोगों की, जो जैसे मुजरिम-से करार दे दिए गए हों। जिनका जुर्म था कि वे किसी अलग मज़हब से ताल्लुक रखते थे। जिनका जुर्म था कि वे हिन्दू थे। जिनका जुर्म था कि वे सिख थे। यही उनकी इकलौती पहचान थी। यही पहचान तो उनकी बर्बादी की वजह बन गयी थी। कभी-कभी हो जाता है ऐसा भी कि लापरवाह होना भी गुनाह हो जाता है। वक़्त के मिज़ाज को न समझने की लापरवाही की ही तो कथा है यह।

यह एक कथा है, ख़ैबर पख्तूनख्वा की। बलूचिस्तान की। सिन्ध की। पश्चिमी पंजाब की। और कश्मीर की। लहू की नदी के किनारे एक नये मुल्क की बुनियाद रखने की। अपने बुज़ुर्गों की धरती से बेदखल किये जाने की ही तो कथा है यह।

यह एक कथा है क़त्लेआम की, लूट की, आगज़नी की, अपहरणों की, दर-बदर होने की, और, ………… बलात्कारों की। क़ातिलों, लुटेरों, आगज़नों, अग़वाकारों, और बलात्कारियों की शिनाख़्त तक भी न होने की ही तो कथा है यह।

यह एक कथा है बहुत-से रावणों की, जिस में कहीं कोई राम न थे, जिस में कहीं कोई लक्ष्मण न थे। कितनी ही सीता जैसी सतवंती औरतें यहाँ अग़वा कर ली गयीं। कितनी ही द्रौपदियां अपमानित हुईं। कृष्ण की ग़ैर-मौजूदगी में हुई एक महाभारत की ही तो कथा है यह।

यह एक कथा है बहुत शिक्षाप्रद। अक़्ल की बहुत बातें छिपी हैं इसमें। कथा में शिक्षा हो, यह अलग बात है। कथा में दी गयी शिक्षा से कोई सचमुच ही शिक्षा प्राप्त कर ले, यह अलग बात है। भयंकर ख़ून-ख़राबे से भी शिक्षा न लेने वाले लोगों की ही तो कथा है यह।

यह एक कथा है धरती के एक हिस्से के बटवारे की। मज़हब के नाम पर लोगों को बांटने का अन्जाम है इसमें। बहकावे में आये सियासतदानों की गाथा है। यह ब्रिटिश इण्डिया के टुकड़े होने की कहानी है। 1947 में पाकिस्तान बनने की ही तो कथा है यह।