माँ की महानता का सच । हल्की-फुल्की बातें

(अमृत पाल सिंघ ‘अमृत’)

#हल्की_फुल्की_बातें

हर-एक उपदेश या हर-एक बात हर किसी के लिये हो, ऐसा हरगिज़ नहीं है। ऐसा मुमकिन नहीं है कि कोई ख़ास उपदेश या कोई ख़ास बात सुना कर हम हर किसी को कायल कर सकें। कुछ-एक बातें ऐसी भी होती हैं, जो कुछ लोगों के लिये बेमायनी होती हैं, अर्थहीन होती हैं।

मां की महानता का जिक्र बहुत सारे विद्वानों, संतो, महापुरुषों, और लेखकों ने किया है। इसमें कोई शक भी नहीं कि इस संसार में मां का दर्जा बहुत ऊंचा है। यही वजह है कि बहुत सारे लेखकों ने कवियों ने शायरों ने मां के बारे में बहुत ही खूबसूरती से लिखा है।

कौन है, जो माँ की तारीफ़ न करता हो? माँ की महानता का ज़िक्र करते हुए बहुत से मैसेजस सोशल मीडिया पर भी बहुत भेजे जाते हैं। मैं ख़ुद भी ऐसे कई मैसेज औरों को भेजता रहा हूँ।

माँ की महानता का यह सच हम सभी जानते हैं। लेकिन, यह भी एक ग़मगीन हक़ीक़त है कि हमारा यह सच किसी और के लिये सच नहीं भी होता।

ऐसे भी कुछ बदनसीब हैं, जिनके लिये माँ की महानता का सच बिलकुल भी सच नहीं है। ये वे बच्चे हैं, जिनकी माँ उनको पालने में ही छोड़ कर चली गयी, और किसी और मर्द के साथ अपना नया घर बसा लिया। माँ के ज़िन्दा होने के बावजूद जो बच्चा यतीम की तरह पला-बढ़ा, उसके आगे मैं माँ की महानता का व्याख्यान कैसे करूँ? हाँ, यह सच है कि ऐसे भी कुछ बदनसीब हैं, जिनके आगे किसी की भी जुबान बंद हो सकती है।

27-28 साल पहले 3-4 महीने की एक बच्ची को उसकी माँ छोड़कर चली गई और दूसरी जगह किसी और मर्द के साथ ग़ैर-कानूनी तौर पर शादी करके अपना घर बसा बैठी। वक़्त बीता। जब वह बच्ची थोड़ी बड़ी हुई, तो उसका बाप भी दिमाग़ी परेशानी की वजह से घर छोड़कर हमेशा-हमेशा के लिए चला गया। उस बच्ची को उसके दादा-दादी ने जैसे-तैसे पाल-पोस कर बड़ा किया। फिर उसकी शादी भी करा दी।

फिर वह मेरे सम्पर्क में आई। उसकी कहानी का तो मुझे पता था, लेकिन कभी उसके मुंह से नहीं सुना कि उसने माँ के बिना और फिर बाप के बिना ज़िन्दगी कैसे बिताई।

अब, मैंने कई बार उसकी बातें सुनी। बहुत बार लम्बी बातचीत हुई। अब मेरे पास पूरी समझ है कि उसने अपनी माँ के बिना और फिर अपने पिता के बिना अब तक की ज़िन्दगी कैसे बिताई।

वह अब मुझे ‘पापा’ कहती है। माँ-बाप के बिना गुज़रे उसके दिन तो मैं नहीं लौटा सकता। हाँ, कुछ कोशिश कर सकता हूँ कि उसकी ज़िन्दगी की यह कमी आने वाले वक़्त में कुछ कम हो जाये।

जब कभी मेरे पास व्हाट्सएप्प (Whatsapp) जैसे किसी ऐप पर माँ या पिता की महानता का कोई मैसेज आता है, तो मेरी हिम्मत नहीं होती कि वह मैसेज मैं अपनी उस बेटी को भेज सकूँ, फॉरवर्ड कर सकूँ।