हिन्दू और सिख शरणार्थियों की मदद कीजिये

#शरणार्थी_मुद्दे

(अमृत पाल सिंघ ‘अमृत’)

पाकिस्तान में मज़हबी कट्टरवादियों की वजह से सैंकड़ों हिन्दू परिवार पिछले कुछ सालों में भारत में आकर शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं। कुछ परिवार ऐसे हैं, जिनको भारतीय नागरिकता (हिंदोस्तानी शहरियत) प्राप्त हो चुकी है। लेकिन बहुत परिवार ऐसे भी हैं, जिनके मेम्बरान को, सदस्यों को अभी तक भारतीय नागरिकता प्राप्त नहीं हुई है।

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की हुकूमत आने के बाद अफ़ग़ान हिन्दूओं और सिक्खों ने भारत में शरण ली। अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान हुकुमत ख़त्म होने के बाद भी वहां दहशतगर्दी की स्थिति में कुछ ख़ास फ़र्क़ ना आने की वजह से भारत में रहने वाले अफ़ग़ान हिन्दू और सिख वापस नहीं जा सके। अब तो अफ़ग़ानिस्तान मेँ तालिबान दुबारा ज़ोर पकड़ते जा रहे हैं, इसलिये इन अफ़ग़ान हिन्दू और सिख शरणार्थियों के वापस अफ़ग़ानिस्तान जाने की उम्मीद भी नज़र नहीं आती। अफ़ग़ानिस्तान के हालात को ले कर रूस, अमेरिका, चाइना, पाकिस्तान, और अफ़ग़ानिस्तान की हुकूमतों ने कई बार मीटिंग्स की हैं, पर इन अफ़ग़ान हिन्दुओं और सिखों के बारे मेँ कभी भी कोई सलाह-मशविरा नहीं हुआ है।

उधर बांग्लादेश में हिन्दूओं के लिए स्थिति पिछले कुछ सालों से लगातार ख़राब होती जा रही है। हिन्दूओं के क़त्ल, हिन्दूओं के घरों और धार्मिक स्थानों पर हमले एक आम बात हो गई है। इस वजह से हज़ारों हिन्दू बांग्लादेश में अपने घर छोड़कर भारत में आकर शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं। उनमें से कई ऐसे हैं, जिनको नागरिकता दी गई है, लेकिन फिर भी बहुत लोग ऐसे हैं, जिनको अभी तक नागरिकता नहीं मिली। असम जैसे कुछ राज्यों में कुछ लोग बांग्लादेशी हिन्दूओं को भारतीय नागरिकता देने का विरोध भी कर रहे हैं।

मेरा यह मानना है कि अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, और पाकिस्तान से आए इन हिन्दू शरणार्थियों को छानबीन के बाद जितनी जल्दी हो सके, भारतीय नागरिकता मिलनी चाहिए। साथ ही साथ, मेरा यह भी मानना है कि सिर्फ़ नागरिकता देने से इन शरणार्थियों की समस्याएँ हल नहीं होने वालीं। उनको यहां पूरी तरह से स्थापित करने के लिए बहुत कोशिशें करनी पड़ेंगी। नागरिकता देना सिर्फ़ एक क़दम है। उनके लिए यहां रोज़गार के भी प्रबंध करने होंगे। उनके लिए सस्ते घरों का भी इंतज़ाम करना होगा।

एक बहुत महत्वपूर्ण क़दम और है, जो भारत में रहने वाले हिन्दूओं और सिखों को उठाना चाहिए।
पाकिस्तान, बांग्लादेश, और अफ़ग़ानिस्तान से आए इन हिन्दू शरणार्थियों में बहुत लड़के और लड़कियां अविवाहित हैं। भारत में रहने वाले हिन्दूओं को चाहिए कि वह इन लड़कों और लड़कियों को अपने लड़कों और लड़कियों के रिश्ते दें और उनकी शादियाँ कराएँ। इससे शरणार्थियों को यहां के समाज में घुल मिल जाने में बहुत आसानी होगी। साथ ही साथ उनको नागरिकता प्राप्त करने में कुछ सुविधा भी हासिल हो जाएगी, क्योंकि शादी करके भारत में नागरिकता लेने शायद आसान होगा। एक शरणार्थी परिवार के लिए एक अविवाहित लड़की की ज़िम्मेदारी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी होती है। अगर उनकी अविवाहित लड़की की शादी भारत के ही किसी सथापित परिवार में हो जाए, तो उनको एक बड़ी चिंता से छुटकारा भी मिलता है और बाकी के परिवार को यहां मदद भी मिलती है।

भारत और पाकिस्तान के लोगों के बीच शादियाँ शुरू से ही हो रही हैं, लेकिन यह शादियाँ ज़्यादातर भारतीय मुस्लिम परिवारों और उन पाकिस्तानी मुस्लिम परिवारों में हो रही है, जो भारत से हिजरत करके पाकिस्तान चले गए थे। पाकिस्तान में इनको अक्सर मुहाजिर के नाम से जाना जाता है। मुहाजिर का शाब्दिक अर्थ होता है हिजरत करने वाला। यह उर्दू बोलने वाले वह लोग हैं, जो 1947 में या उसके बाद भारत से हिजरत कर के पाकिस्तान चले गए थे। इन मुहाजिरों का भारत में पीछे रह गए अपने रिश्तेदारों से संपर्क बना रहा। पाकिस्तान में जाकर बसने के बावजूद पाकिस्तान के अलग अलग सूबों के लोगों से उनके उतने गहरे सम्बन्ध नहीं बन पाए, जितने गहरे सम्बन्ध उनके भारत में रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोगों से हैं। इसकी साफ़ वजह यह है कि उनकी ज़ुबान, तहज़ीब, और रस्मो-रिवाज भारत के मुसलमानों से ज़्यादा मिलते हैं।

भारतीय मुस्लिम लड़की का शादी करके पाकिस्तान में बस जाना या पाकिस्तानी मुस्लिम लड़की का शादी करके भारत में बस जाना कुछ आम-सी बात है।

इसके मुक़ाबले में पाकिस्तानी हिन्दू परिवारों की शादियाँ भारतीय हिन्दू परिवारों में कम ही हुई हैं। वैसे, कई पाकिस्तानी और भारतीय हिन्दू परिवार हैं, जिनकी आपस में रिश्तेदारियां हैं। कुछ मामलों में यह रिश्तेदारियां 1947 के बंटवारे के पहले से बनी हुई हैं। कुछ रिश्तेदारियां 1947 के बाद भी बनी हैं। लेकिन इतनी बात तो ज़रूर है कि हिन्दू परिवारों में यह रिश्तेदारियां कम और मुस्लिम परिवारों में यह रिश्तेदारियां ज़्यादा बनी हैं।

पाकिस्तान के सिंध के इलाक़े में ऐसे हिन्दू परिवार हैं, जिनके कुछ रिश्तेदार भारत में रहते हैं। इन परिवारों में कभी-कभार शादी होने की ख़बरें भी सुनने में आती हैं।

भारत में जो सियासी हालात हैं, जो राजनैतिक स्थिति है, उसे देखते हुए यह सोचना ग़लत है कि बांग्लादेश, पाकिस्तान, और अफ़ग़ानिस्तान से आए शरणार्थी परिवार सिर्फ़ सरकारी सहायता से ही यहां भारत में जल्दी स्थापित हो जाएंगे। बाहर से आए ये शरणार्थी यहां के लोगों की खुले दिल से की गई सहायता के बिना यहां जल्दी स्थापित ना हो पाएंगे। बिना सहायता के ये यहाँ स्थापित हो जाएंगे, परन्तु जल्दी स्थापित नहीं हो पाएंगे।

1947 मेँ पाकिस्तान बनने के बाद भी भारत के अन्दर कई रियासतें थी, जिनके राजा हिन्दू या सिख थे। उनमेँ से कुछ राजाओं ने पाकिस्तान से आने वाले बहुत हिन्दू और सिख शरणार्थियों की मदद की थी। उदाहरण के तौर पर पटियाला के महाराजा यादविंदर सिंह ने पाकिस्तान से आए हिन्दू और सिख शरणार्थियों के लिए दिल खोलकर सहायता की थी। उन हिन्दू और सिख राजाओं को कोई सियासी मजबूरियां ना थीं।

आज भारत के सियासी रहनुमाओं को, राजनेताओं को कुछ सियासी मजबूरियां हो सकती हैं। लेकिन क्या भारत में रहने वाले आम हिन्दूओं और सिखों को भी कोई सियासी मजबूरी है कि वह बांग्लादेशी, पाकिस्तानी, अफ़ग़ानिस्तानी हिन्दू और सिख शरणार्थियों की सहायता ना कर सकें?

बांग्लादेश, पाकिस्तान, और अफ़ग़ानिस्तान में हमारे लोगों की मुसीबतों पर हमारे चीखने-चिल्लाने से कुछ नहीं होने वाला, अगर हम ख़ुद हमारे ही देश में शरणार्थियों की तरह रह रहे इन लोगों की अपने-अपने तरीक़े से कोई सहायता ना कर पाए, तो।

एक बात और है। अगर आप लोग इन शरणार्थियों की मदद नहीं भी करेंगे, तो भी ये यहां आपकी सहायता के बिना ही स्थापित हो जाएंगे। हां, आपकी आने वाली पीढ़ियां कभी यह नहीं कह पाएँगी कि उनके बुज़ुर्गों ने इन शरणार्थियों की कभी मदद की थी। याद रहे कि 1947 के वे शरणार्थी भी, जो अपने तन और मन पर ज़ख़्म ही ज़ख़्म ले कर ख़ाली हाथ यहाँ पहुँचे थे, और जिनकी यहाँ कुछ ख़ास सहायता नहीं की गई थी, आज यहाँ स्थापित परिवारों मेँ गिने जाते हैं।