#पाकिस्तान_की_स्थापना । #यूनियनिस्ट_पार्टी । #मजलिस_ए_अहरार_ए_इस्लाम । #मौलाना_अबुल_कलाम_आज़ाद । #डॉ_सैफुद्दीन_किचलु । #डॉ_मग़फ़ूर_अहमद_अजाज़ी । #आल_इण्डिया_जमहूर_मुस्लिम_लीग । #ख़ान_अब्दुल_गफ़्फ़ार_ख़ान । #ख़ुदाई_ख़िदमतगार ।
इस विडियो के मुख्य नुक्ते इस प्रकार हैं: –
* मार्च, 1940 में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने अपने लाहौर सेशन में अलग मुस्लिम मुल्क की मांग रखी थी, लेकिन इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि यूनाइटेड इंडिया के सब मुसलमान ही इंडिया से अलग एक मुस्लिम मुल्क बनाने के हक में थे, या मुसलमानों की सभी जमातें ही इंडिया से अलग एक मुस्लिम मुल्क बनाने के हक में थीं।
* मैं पंजाब में यूनियनिस्ट पार्टी की बात इससे पहले की एक वीडियो में कर चुका हूं। यूनियनिस्ट पार्टी में हिन्दू और सिख भी थे, लेकिन इसमें मैजोरिटी मुसलमानों की ही थी। 1937 से पंजाब में यूनियनिस्ट पार्टी की ही मिनिस्ट्री थी। 1937 से 1942 तक सर सिकन्दर हयात खान पंजाब के चीफ मिनिस्टर रहे। उनकी मौत के बाद 1942 में सर ख़िज़्र हयात टिवाणा चीफ मिनिस्टर बने। मार्च 1947 तक वो ही चीफ मिनिस्टर रहे। यूनियनिस्ट मिनिस्ट्री ऑफिशियली पाकिस्तान स्कीम की हिमायत नहीं करती थी।
* मजलिस-ए-अहरार-ए-इस्लाम पार्टी की बुनियाद 29 दिसम्बर 1929 को रखी गई थी। इस पार्टी का base पंजाब में था। नार्थ वेस्ट frontier प्रोविन्स में भी इसका कुछ असर था। मौलाना हबीब उर रहमान लुधियानवी, चौधरी अफ़ज़ल हक़, और सईद अताउल्लाह शाह बुखारी इस पार्टी के रहनुमाओं में थे। इंडिया की आज़ादी और अलग-अलग फ़िरक़ों में अच्छे ताल्लुक़ात कायम करना इस का मक़सद था। मुस्लिम लीग वाले मुहम्मद अली जिन्नाह को क़ायद ए आज़म कहते थे, लेकिन अहरार वाले उन्हें काफ़िर ए आज़म कहते थे। यूनाइटेड इण्डिया की पार्टीशन का मजलिस-ए-अहरार-ए-इस्लाम ने विरोध किया था। इण्डिया में 1947 में बाद यह पार्टी Majlis-E-Ahrar Islam Hind, मजलिस ए अहरार इस्लाम हिन्द के नाम से लुधियाना में centered हो के चलती रही, हालांकि इण्डियन पंजाब से ज़्यादातर मुस्लिम आबादी पाकिस्तान चले जाने की वजह से अहरार का असर बिल्कुल कम हो गया।
* पाकिस्तान की मांग और two nation theory का ज़ोरदार विरोध करने वाले मुसलमानों में एक बड़ा नाम मौलाना अबुल कलाम आज़ाद साहिब का है। उर्दू, अरबी, और फ़ारसी के आलिम, इस्लामिक स्कॉलर, मौलाना सईद अबुल कलाम महियुद्दीन अहमद आज़ाद की पैदाइश इस्लाम के सबसे मुक़द्दस शहर मक्का में हुई । कहा जाता है कि उनके खानदान का सीधा ताल्लुक़ इमाम हुसैन साहिब से था। मौलाना साहिब 1940 से 1945 तक कांग्रेस के प्रेजिडेंट रहे। भारत के आज़ाद होने के बाद मौलाना साहिब भारत के पहले एजुकेशन मिनिस्टर बने। 11 नवम्बर को उनके जन्मदिन को भारत में नेशनल एजुकेशन डे के तौर पर मनाया जाता है। उनकी मौत के कई साल बाद 1992 में भारत सरकार ने उनको भारत रत्न दिया।
* पाकिस्तान की मांग का ज़ोरदार विरोध करने वाले मुसलमान रहनुमाओं में एक और बड़ा नाम पंजाब के डॉ सैफ़ुद्दीन किचलू साहिब का है। इण्डियन नेशनल कांग्रेस में शामिल हो कर वो हमेशा हिन्दू-मुस्लिम यूनिटी के लिये कोशिशें करते रहे। ब्रिटिश हुकूमत ने उनको कई बार ग्रिफ्तार किया और वो कुल मिलाकर कोई 14 साल जेल में रहे। आल इण्डिया मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की मांग की उन्होंने ज़बरदस्त मुख़ालफ़त की। 1947 में पाकिस्तान बनने के बाद उनका घर दंगाबाज़ों ने जला दिया, जिसके बाद वो दिल्ली चले गये। उनकी मौत 1963 में हुई।
* डॉ मग़फ़ूर अहमद अजाज़ी आल इण्डिया मुस्लिम लीग में थे। जब आल इण्डिया मुस्लिम लीग ने 1940 मे लाहौर में अलग मुस्लिम देश बनाने का मता / क़रारदाद पास किया, तो वो इसके खिलाफ़ थे। इसलिये उन्होने ने उसी साल आल इण्डिया जमहूर मुस्लिम लीग के नाम से एक अलग सियासी जमात खड़ी कर ली। आल इण्डिया जमहूर मुस्लिम लीग का पहला सेशन बिहार के मुजफ्फरपुर में हुआ, जिसमे डॉ मग़फ़ूर अहमद अजाज़ी को जनरल सेकरेटरी चुना गया। आल इण्डिया जमहूर मुस्लिम लीग का एक बड़ा हिस्सा डॉ मग़फ़ूर अहमद अजाज़ी की रहनुमाई में इंडियन नेशनल काँग्रेस में शामिल हो गया।
* पाकिस्तान की मांग का विरोध करने वाले मुस्लिम रहनुमाओं में सबसे बड़ा नाम सरहदी गाँधी भारत रत्न ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान साहिब का है। सूबा सरहद के ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान साहिब इंडियन नेशनल काँग्रेस के एक बड़े रहनुमा थे, जिन्होने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ़ जद्दोजहद में हिस्सा लिया। खान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान साहिब को अहिंसा या non-violence की उनकी policies के लिए सरहद्दी गाँधी भी कहा जाता था, क्यूंकि उन्होने सूबा सरहद में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ़ non-violent मूवमेंट चलाई थी। प्यार से लोग उन्हें बादशाह ख़ान या बाचा ख़ान भी कहते थे। ख़ान साहिब ने 1929 में खुदाई ख़िदमतगार मूवमेंट शुरू की। खुदाई ख़िदमतगार मूवमेंट में एक लाख से ज़्यादा मुसलमान मेम्बर थे। अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान साहिब ने आल इण्डिया मुस्लिम लीग की इण्डिया की पारटिशन करने की मांग की सख़्त मुखालफत की। जब इंडियन नेशनल काँग्रेस ने खुदाई ख़िदमतगार की सलाह के बिना ही पारटिशन प्लान पर अपनी सहमति जताई, तो ख़ान साहिब ने काँग्रेस के रहनुमाओं से कहा था, “आप ने हमें भेड़ियों के आगे फेंक दिया है।”
* इंडियन नेशनल कॉंग्रेस के 100 साल पूरे होने पर 1985 में ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान साहिब भारत आए और इंडियन नेशनल काँग्रेस की celebrations में शामिल हुये। 1987 में वो फिर भारत आये, जब भारत सरकार ने उनको भारत सरकार का सबसे बड़ा civilian award भारत रत्न दिया।
* 20 जनवरी, 1988 को ख़ान साहिब की मौत पेशावर में हुई। उनकी मौत के कुछ घण्टों के अन्दर ही भारत के उस वक़्त के प्राइम मिनिस्टर राजीव गान्धी अपने कुछ मिनिस्टर्स के साथ पेशावर पहुँचे और सभी भारतीयों की तरफ़ से ख़ान साहिब को श्रद्धांजलि दी। भारत सरकार ने ख़ान साहिब की मौत पर पाँच दिन के सोग का ऐलान किया था।