#ख़ून_से_लेंगे_पाकिस्तान ।
#पाकिस्तान_की_स्थापना ।
#हिन्दू_सिख_क़त्लेआम ।
इस विडियो के ख़ास नुक्ते इस प्रकार हैं: –
* ओगी के बाज़ार पर हमला करके दंगाइयों ने पहले हिन्दुओं और सिखों की दुकानों को आग लगा दी और उसके बाद 5 हिन्दुओं और सिखों को क़त्ल कर दिया।
* कुछ हिन्दुओं और सिखों को उनको गांवों से निकालकर सुम इलाही मुंग में ठहराया गया था। दंगाइयों ने सुम इलाही मुंग पर हमला करके इनमें से 14 हिन्दुओं और सिखों को क़त्ल कर दिया। 27 हिन्दू और सिख इस हमले में ज़ख़्मी हुये।
* जल्लो गांव में भी हिन्दुओं और सिखों के क़त्ल हुये। गुरुद्वारा साहिब को आग लगा दी गयी।
* 26 दिसंबर 1946 को 3 सिखों का क़त्ल हुआ। काहन सिंह और लहणा सिंह दोनों जीजा-साला थे। वो काहन सिंघ की 9-10 साल की बेटी बलबीर कौर को उसके ससुराल गांव धराड़ी से उसके मायके के गांव धणकां लेकर जा रहे थे। धणकां पहुंचने से पहले ही रास्ते में 13-14 लोगों की एक भीड़ ने तेज़दार हथियारों से उनको बेरहमी से क़त्ल कर दिया। पहले काहन सिंह और लहणा सिंह को क़त्ल किया गया। अपने बाप का क़त्ल होते देख बच्ची डर से चीखने लगी, तो गुण्डों ने पहले उसके पेट में बरछी मारी और फिर एक छुरी से उसका गला काट दिया।
* 1 जनवरी 1947 को सैंकड़ों हमलावरों ने मोहरी वडभैंन गांव पर दुपहर के वक़्त हमला बोल दिया। हमले के वक़्त मोहरी वडभैंन में लगभग 350 हिंदू और सिख मौजूद थे। जैसे ही गांव पर हमला शुरू हुआ, हिंदू और सिख अपनी हिफ़ाज़त के लिये अपने घरों को छोड़कर गांव के गुरुद्वारे में आ गये। जब रात हुई और अंधेरा गहरा हो गया, तो सर्दी की वजह से हमलावर गुरुद्वारे से दूर होकर बैठ गये। गुरुद्वारे के अंदर घिरे हुए सभी लोगों ने फ़ैसला किया कि अब गांव छोड़कर जाना ही होगा, क्योंकि अब गांव में रहना महफ़ूज़ नहीं है। वो सभी लोग
चुपचाप गुरुद्वारे से बाहर निकले और अपने जलते हुए घरों को बेबसी से देखते हुये गांव से निकलने लगे। रात के अंधेरे में जब कि बहुत सर्दी पड़ रही थी, यह 350 के लगभग हिंदू और सिक्खों का काफ़िला चुपचाप, बिना आवाज़ किए मोहरी वडभैंन से निकला और हवेलियां की तरफ़ बढ़ने लगा।
* मोहरी वडभैंन पर हमले के समय जो लोग फुर्ती से अपने घरों को छोड़कर गुरुद्वारा साहिब में पहुंच गये, वो सभी बच गये। लेकिन ऐसे भी लोग थे, जो अपने घरों से निकल नहीं सके, या, जो अपने घरों से निकले तो सही, लेकिन गुरुद्वारे तक नहीं पहुंच पाये। इनमें से शेर सिंह, मेहताब सिंह, ज्ञान सिंघ, गुलाब सिंह और उनका परिवार मोहरी वडभैंन गांव में ही हमलावरों के हाथों मारे गये।
* उसी दिन, यानी 1 जनवरी 1947 को ही अखरूटा गांव पर भी हमला किया गया। इस गांव में सिखों और हिंदुओं के 80 घर थे। गोकुल सिंह की गोलियां लगने से मौत हो गई। गुलाब सिंह और उनकी बीवी, रंगील सिंह की बेटी, एक और औरत श्रीमती लीलावंती समेत कुल 6 हिन्दू और सिख अखरूटा गांव पर हुये हमले में मारे गये। एक 9-10 साल की बच्ची को गुण्डे उठा कर ले गये।
* गांवों में हिन्दुओं और सिखों पर हमलों की ख़बरें सुनकर हमारे गांव मुहाड़ी के सभी हिन्दु और सिख आपस में सलाह करने लगे। सभी ने मिलकर फ़ैसला किया कि गांव को छोड़ देना ही सही है। हमारे गांव के सभी हिन्दू और सिख पहली और दूसरी जनवरी के बीच की रात को चुपचाप अपने घरों से निकले और मुहाड़ी को अलविदा कह दी।
* धणकां-कड़छाँ के हिन्दू और सिख भी पहली और दूसरी जनवरी के बीच की रात को अपने गांव को छोड़ कर हवेलियाँ की तरफ़ चल दिये। जब धणकां गांव पर हमला हुआ, तो उस वक़्त काला सिंघ और रवेल सिंघ उस गांव में थे। इनके पास एक राइफल और एक पिस्टल थी। कुछ घण्टों तक दोनों तरफ से फायरिंग होती रही। आख़िर काला सिंह गोलियां लगने से शहीद हो गये। रवेल सिंह किसी तरह से धणकां से निकलकर हमारे गांव मुहाड़ी में पहुंच गये। जब हमारे गांव मुहाड़ी पर हमला हुआ, उस वक़्त वहां सिर्फ़ एक ही सिख रवेल सिंह मौजूद थे, जो के घर के अंदर बंद हुए बैठे थे। हमलावरों ने जब यह जाना कि इस घर के अंदर एक सिख बंद है, तो उन्होंने घर को आग लगा दी। हमारे मुहाड़ी में उसी घर के अंदर रवेल सिंह जिंदा ही जला दिये गये।
* 1 जनवरी को ही जाबा गांव पर हमला किया गया। गांव में हिंदू और सिख परिवारों में उस वक्त ज़्यादातर बूढ़े मर्द औरतें और बच्चे थे। हिंदुओं सिखों के बुजुर्गों ने देखा कि अब संभलने का वक्त नहीं था। उन्होंने अपने घरों को खुला ही छोड़ कर औरतों और बच्चों समेत गांव के पास ही एक पहाड़ी चोटी पर जाकर मोर्चा संभाल लिया। जब गांव पर हमला हुआ, तो खुले पड़े घरों को हमलावरों ने लूट लिया। हिंदू और सिख परिवार रात होने तक उसी पहाड़ी चोटी पर टिके रहे। जब रात हुई, तो वह वहां से निकले और चलते चलते पीपला गांव में पहुंच गये। पीपला गांव में कई सिख परिवार रहते थे। अब पीपला गांव के सिख परिवार और जाबा से आए हिंदू और सिख परिवार इकट्ठे होकर रात के अंधेरे में ही हवेलियां की तरफ़ चल पड़े।