हिंसा और प्रेम

कई व्यक्ति ऐसे होते हैं, जो दूसरे लोगों को शारीरिक या मौखिक हिंसा से भयभीत करते रहते हैं। यह भी स्वाभाविक है कि दूसरों के विरुद्ध हिंसा करने वालों के शत्रु भी बन ही जाते हैं। हिंसा से हिंसा पैदा होती ही है। दूसरों के विरुद्ध हिंसा का प्रयोग करने वाले हमेशा ही जवाबी हिंसा से भयभीत रहते हैं, चाहे वे अपने भय को छुपा कर ही रखें।

दूसरी तरफ़, ऐसे भी व्यक्ति होते हैं, जो सभी को प्रेम करने वाले होते हैं। वे प्रेम के ऐसे पुजारी होते हैं कि अपने विरोधियों का भी बुरा नहीं करते।

सभी को प्रेम करने वाले व्यक्तियों के बारे में यह पूरी तरह से निश्चित है कि उनको भी प्रेम करने वाले लोगों की कमी नहीं होती। उनके प्रेम के जवाब में उनको भी अनेक लोगों से प्रेम मिलता है। अगर हिंसा से हिंसा पैदा होती है, तो प्रेम से प्रेम पैदा होता है।

हर व्यक्ति के पास हिंसा करने का भी विकल्प है और प्रेम करने का भी। वह जो भी विकल्प चुनना चाहे, चुन सकता है। जो भी विकल्प वह चुनेगा, बदले में उस को भी वही कुछ मिलना है।

~ (स्वामी) अमृत पाल सिंघ ‘अमृत’