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टू नेशन थ्योरी – भाग 1/4 । पाकिस्तान की स्थापना (Hindi/Urdu)

टू नेशन थ्योरी पर मेरी विडियो का यह पहला हिस्सा है, जिसमें इस विषय पर मैंने विचार दिये हैं कि “नेशन क्या है?”

#पाकिस्तान । #शरणार्थी_मुद्दे । मेहरबानी करके पूरी विडियो देखिये। इस विडियो में मुख्य मुद्दे इस प्रकार हैं: –

* पाकिस्तान बनाने की माँग की अहम बुनियाद टू-नेशन थ्योरी या दो-क़ौमी नज़रिया ही था।
* नेशन क्या है? नेशन की परिभाषा क्या है?
* अगर मुसलमान अपने-आप में अलग नेशन हैं, तो क्या वे सिविक नेशन (Civic Nation) हैं, एथनिक नेशन (Ethnic Nation) हैं, या लिंगुइस्टिक नेशन (Linguistic Nation) हैं?
* मुस्लिम लीग ने जब मुस्लिम नेशन का मुद्दा उठाया, तो उन्होने दरअसल नेशन की एक अलग परिभाषा देने की कोशिश की थी। इस परिभाषा के अनुसार religion या मज़हब ही नेशन है।

इतिहास की समीक्षा निष्पक्ष हो । पाकिस्तान की स्थापना (Hindi/Urdu)

इतिहास की समीक्षा निष्पक्ष हो । पाकिस्तान की स्थापना (Hindi/Urdu)

تواریخ کا جایزہ منصف مزاج ہو
قیام پاکستان

(अमृत पाल सिंघ ‘अमृत’)

Those who cannot remember the past are condemned to repeat it. – George Santayana

#शरणार्थी_मुद्दे । #पाकिस्तान_की_स्थापना ।

मेहरबानी करके पूरी विडियो को सुनिये। इस में मुख्य नुक़ते इस प्रकार हैं: –

* इन्सानों के बीते वक़्त का अध्ययन ही इतिहास है। यह वे घटनायें, वे वाक़ियात हैं, जिनका ज़िक्र लिखित दस्तावेज़ों में किया गया है। यहाँ भूतकाल का मतलब उन घटनाओं से है, जो काफ़ी पहले हो चुकी हों। उन घटनाओं में लिए गए फ़ैसले पूरे हो चुके हों। उन फ़ैसलों के असर होने ख़त्म हो चुके हों, और उन घटनाओं में शामिल लोग मर चुके हों।

* ब्रिटिश हुकूमत से आज़ाद होते वक़्त इंडियन यूनियन और पाकिस्तान की स्थापना के लिये जिन्होने फ़ैसले किये, वे तो बेशक अब ज़िन्दा नहीं रहे, लेकिन जिन पर उन फ़ैसलों के असर हुये, उनमें से कुछ थोड़े-से लोग अभी भी ज़िन्दा हैं। जो मर भी चुके, उन लोगों के वारिस भी मौजूद हैं, जिन पर उन फ़ैसलों का असर अभी तक हो रहा है, और यक़ीनन ही उन फ़ैसलों का असर अभी काफ़ी वक़्त और होता रहेगा।

* मेरा मक़सद इतिहास बताना तो नहीं है। मेरा मक़सद यह दिखाना है कि वर्तमान में क्या हो रहा है। यह अलग बात है कि मैं वर्तमान को दिखाते वक़्त जिन घटनाओं की तरफ़ इशारा कर रहा हूँ, उनको बहुत लोग इतिहास मान चुके हैं।

* इतिहास को याद रखना निहायत ज़रूरी है, क्योंकि एक वक़्त ऐसा भी आता है, जब इतिहास वह नहीं रहता, जो सचमुच हुआ था, बल्कि वह सिर्फ़ वही कुछ रह जाता है, जो लोगों को याद रह जाये। वक़्त के साथ इतिहास ख़ुद को भी शिकस्त दे देता है। मैं चाहता हूँ कि आप को वह सब कुछ ही याद रहे, जो हुआ और जो हो रहा है।

* कहते हैं कि इतिहास फ़तह हासिल करने वाला ही लिखता है। मसला उस वक़्त पैदा होता है, जब एक दूसरे के मुख़ालिफ़ धड़े ख़ुद को फ़तहयाब या मज़लूम ऐलान करते हैं। ऐसी सूरत में इतिहास के दो बिल्कुल मुख़ालिफ़ संस्करण सामने आते हैं। एक ग्रुप के लिए दूसरे ग्रुप का इतिहास सिर्फ़ प्रोपोगंडा है और अपना लिखा गया ज़िक्र ही इतिहास है।

* भारत और पाकिस्तान की आज़ादी का इतिहास अपने-अपने नज़रिये से लिखा गया है। एक ग्रुप उनका है, जो पाकिस्तान की स्थापना के लिए जद्दोजहद करते रहे और उस जद्दोजहद में कामयाब भी हुए। उन्होंने इतिहास की अपने तरीक़े से व्याख्या की है। एक ग्रुप उनका है, जो भारत की राज-सत्ता पर काबिज़ हुए और उन्होंने उस दौर के इतिहास की व्याख्या अपने नज़रिये से की है।

* दिल में नफ़रत भर कर इतिहास का जायज़ा नहीं लिया जाना चाहिये। अगर दिल में नफ़रत भर कर इतिहास की समीक्षा की जाये, तो समीक्षा एकतरफ़ा ही होगी। टू-नेशन थ्योरी (Two Nation Theory) या दो-क़ौमी उसूल का जायज़ा भी लेना हो, तो यह यक़ीनी बनाया जाना चाहिये कि समीक्षा करते वक़्त दिल में किसी प्रकार की नफ़रत न हो। इतिहास में हो चुके किसी शख़्स के काम का जायज़ा लेते वक़्त भी यह ज़रूरी है कि दिल में नफ़रत न हो।

* समीक्षा हमेशा तथ्यों को सामने रखकर होनी चाहिये। सबसे पहले तथ्य बताये जाने चाहिये। उसके बाद उन तथ्यों की समीक्षा की जानी चाहिये।

* मैं अपने ख़्यालात सामने मौजूद तथ्यों पर आधारित करता हूँ। आप इन ख़्यालात से सहमत हों या न सहमत हों, यह अलग बात है, लेकिन मैं इतना ज़रूर कहूँगा कि मेरे दिल में किसी के लिये भी नफ़रत नहीं है। उन लिये भी मेरे दिल में नफ़रत नहीं है, जिनके ख़्यालात की वजह से, जिनकी नीतियों की वजह से मेरे बुज़ुर्गों को दरबदर होना पड़ा। जिनकी नीतियों की वजह से मेरे बुज़ुर्गों को अपनी ख़ानदानी ज़मीन और गांव से उजड़ना पड़ा। वैसे भी, जो अब मर चुके हैं, उनसे नफ़रत कैसी?

यह एक कथा है । पाकिस्तान की स्थापना

(अमृत पाल सिंघ ‘अमृत’)

#शरणार्थी_मुद्दे । #पाकिस्तान_की_स्थापना

यह एक कथा है, जो मज़हब के नाम पर रची गई। इसमें ईश्वर, अल्लाह, वाहेगुरु की बन्दगी की बात नहीं होने वाली थी। राम वाले, अल्लाह वाले, वाहेगुरु वाले बस बेचारे-से बन के रह गये थे। हुक्मरान बनने की भूख से तड़प रहे ख़ुदग़रज़ सियासतदानों की चालों की ही तो कथा है यह।

यह एक कथा है, जो बहुतों के लिए बहुत पुरानी है। जो इस कथा के पात्र हैं, उनके लिए यह अभी कल की ही बात है। कहते हैं कि वक़्त रुकता नहीं, लेकिन कभी-कभी किसी-किसी के साथ ऐसा भी हो जाता है कि उसके लिये वक़्त थम-सा जाता है। जैसे बर्फ़-सी जम गयी हो ज़िन्दगी। जैसे किसी ब्लैक-होल में गिर पड़ी हो एक पूरी की पूरी नस्ल। रुक गये किसी वक़्त की ही तो कथा है यह।

कोई अटका हुआ है पल शायद।
वक़्त में पड़ गया है बल शायद।
(गुलज़ार)।

यह एक कथा है उन लोगों की, जो जैसे मुजरिम-से करार दे दिए गए हों। जिनका जुर्म था कि वे किसी अलग मज़हब से ताल्लुक रखते थे। जिनका जुर्म था कि वे हिन्दू थे। जिनका जुर्म था कि वे सिख थे। यही उनकी इकलौती पहचान थी। यही पहचान तो उनकी बर्बादी की वजह बन गयी थी। कभी-कभी हो जाता है ऐसा भी कि लापरवाह होना भी गुनाह हो जाता है। वक़्त के मिज़ाज को न समझने की लापरवाही की ही तो कथा है यह।

यह एक कथा है, ख़ैबर पख्तूनख्वा की। बलूचिस्तान की। सिन्ध की। पश्चिमी पंजाब की। और कश्मीर की। लहू की नदी के किनारे एक नये मुल्क की बुनियाद रखने की। अपने बुज़ुर्गों की धरती से बेदखल किये जाने की ही तो कथा है यह।

यह एक कथा है क़त्लेआम की, लूट की, आगज़नी की, अपहरणों की, दर-बदर होने की, और, ………… बलात्कारों की। क़ातिलों, लुटेरों, आगज़नों, अग़वाकारों, और बलात्कारियों की शिनाख़्त तक भी न होने की ही तो कथा है यह।

यह एक कथा है बहुत-से रावणों की, जिस में कहीं कोई राम न थे, जिस में कहीं कोई लक्ष्मण न थे। कितनी ही सीता जैसी सतवंती औरतें यहाँ अग़वा कर ली गयीं। कितनी ही द्रौपदियां अपमानित हुईं। कृष्ण की ग़ैर-मौजूदगी में हुई एक महाभारत की ही तो कथा है यह।

यह एक कथा है बहुत शिक्षाप्रद। अक़्ल की बहुत बातें छिपी हैं इसमें। कथा में शिक्षा हो, यह अलग बात है। कथा में दी गयी शिक्षा से कोई सचमुच ही शिक्षा प्राप्त कर ले, यह अलग बात है। भयंकर ख़ून-ख़राबे से भी शिक्षा न लेने वाले लोगों की ही तो कथा है यह।

यह एक कथा है धरती के एक हिस्से के बटवारे की। मज़हब के नाम पर लोगों को बांटने का अन्जाम है इसमें। बहकावे में आये सियासतदानों की गाथा है। यह ब्रिटिश इण्डिया के टुकड़े होने की कहानी है। 1947 में पाकिस्तान बनने की ही तो कथा है यह।