भाग 3 – पोठोहार में हिन्दू-सिख क़त्लेआम । पाकिस्तान की स्थापना ।

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मेहरबानी करके पूरी विडियो देखें/सुनें। इस विडियो के कुछ नुक्ते इस प्रकार हैं: –

* 9 मार्च को धामली पर हमला हुआ। हिन्दुओं-सिखों ने जब फायरिंग की, तो हमलावर भाग गये। अगले दिन फिर हमला हुआ। हिन्दुओं-सिखों की फायरिंग के बाद हमलावर फिर भाग खड़े हुये। 12 मार्च को बहुत बड़ी भीड़ ने हमला किया और घरों को आग लगाना शुरू कर दिया। गाँव के एक हिन्दू ने अमन-शान्ति की बातचीत शुरू की। हमलावरों ने हमला रोकने के बदले 14 हज़ार रुपये की माँग की। उनको 14 हज़ार रुपये दे दिये गये और वो वापस चले गये। उन दिनों 14 हज़ार रुपये बहुत बड़ी रक़म हुआ करती थी।

* लेकिन अगले ही दिन हमलावर फिर आ गये। अब हिन्दू और सिख जो भी हथियार मिला, लेकर हमलावरों पर टूट पड़े। तक़रीबन 500 हिन्दू-सिख यहाँ शहीद हुये। कुछ ही लोग बच सके। जैसा कि पोठोहार में बाक़ी जगहों पर भी हुआ, हिन्दू-सिखों का क़त्लेआम हो जाने के बाद मिलिट्री भी पहुँच गयी।

* कहुटा तहसील में नारा गाँव में सिखों की मेजोरिटी थी। 9 मार्च शाम को इस गाँव को दंगाइयों ने घेरना शुरू किया। रात को गाँव पर हमला कर कुछ घरों को आग लगा दी गयी। अगले दिन 10 मार्च को भी हिन्दू-सिखों पर हमले, लूट, और आगज़नी जारी रही। सिख और हिन्दू मुक़ाबला करते रहे। 11 मार्च तक दंगाइयों की तादाद बढ़ कर हज़ारों में हो गयी। हमले और तेज़ गये। हमलावर गाँव के अन्दर तक आने में कामयाब हो गये। कई सिख औरतों और बच्चों को जलते घरों में फेंक कर ज़िंदा जला दिया गया। औरतों पर ऐसे-ऐसे ज़ुल्म किए गये, जिन का ब्यान करना भी मुश्किल है। कई औरतों ने कुएँ में कूदकर जान दे दी।

* हरियाल में 9 मार्च को ही तक़रीबन 20 सिखों के क़त्ल हुये। 40 को अग़वा किया गया। गुरुद्वारा जला दिया गया।
हरियाल मास्टर तारा सिंघ का पुश्तैनी गाँव है। दंगाइयों ने अपनी नफ़रत का खुला मुज़ाहरा करते हुये मास्टर तारा सिंघ के घर को बिल्कुल तोड़ कर गिरा दिया। फिर उस जगह पर जूते मारकर उन्होंने अपने ग़ुस्से की नुमाइश की।

* रावलपिण्डी के मंडरा गाँव मे 9 मार्च को एक बड़ा क़त्लेआम हुया, जिसमें 200 हिन्दू और सिख शहीद हुये। सिखों और हिन्दुओं की दुकानों और घरों को लूटकर जला दिया गया। गुरुद्वारा साहिब और स्कूल को भी आग लगा दी गयी। 40 लापता हो गए, जो शायद गाँव से भाग हुये रास्ते में कहीं क़त्ल कर दिये गए।

* 10 मार्च को बेवल गाँव को दंगाइयों की एक बड़ी भीड़ ने घेर लिया। इस गाँव में तक़रीबन 400 सिख रहते थे और कुछ आबादी हिन्दूओं और मुसलमानों की भी थी। जब हमला हुआ, तो गाँव में मौजूद 400 के क़रीब हिन्दू और सिख गुरुद्वारे और गुरुद्वारे के आसपास कुछ घरों में चले गये। दंगाइयों ने गुरुद्वारे को घेर कर उसमें आग लगा दी। आसपास को भी आग लगा दी। गुरुद्वारे और आसपास के घरों में पनाह लिये बैठे सभी के सभी हिन्दू और सिख इनमें ज़िन्दा ही जल कर मर गये। जो हिन्दू और सिख पकड़े गये, उनको बहुत तसीहे दिये गये। एक सिख मुकन्द सिंघ की दोनों आँखें निकाल ली गईं। फिर उसको टाँगों से पकड़कर तब तक घसीटते रहे, जब तक वह मर न गया।

* 10 मार्च को दंगाइयों ने दुबेरण को घेर लिया। हिन्दू और सिख गुरुद्वारे में चले गये। ख़ाली पड़े घरों को दंगाइयों ने लूटकर जला दिया। कुछ सिखों के पास बन्दूकें थी, जिससे उन्होंने गुरुद्वारे से कुछ देर मुक़ाबला किया। गोलियां ख़त्म होने पर वो मुक़ाबला भी बन्द हो गया। हमलावरों ने उनको सरेंडर करने को कहा। उन्होंने वादा किया कि उनको मारा नहीं जायेगा और औरतों को बेइज़्ज़त नहीं किया जायेगा। इसपर तक़रीबन 300 हिन्दू, सिख गुरुद्वारे से बाहर आ गये। उन सभी को बरकत सिंघ के घर पर ले जाया गया। रात को हमलावरों ने उस घर पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी। घर के अन्दर मौजूद सभी हिन्दू, सिख ज़िन्दा ही जल कर मर गये।

* अगली सुबह हमलावरों ने गुरुद्वारे पर फिर से हमला करके गुरुद्वारे के दरवाज़े तोड़ दिये। अन्दर मौजूद कई सिख अब हाथों में तलवारें लेकर बाहर निकले और दंगाइयों पर टूट पड़े। सभी लड़ते-लड़ते शहीद हो गये। दंगाइयों ने बाक़ी सिखों और हिन्दुओं को भी क़त्ल कर दिया। इस गाँव से कुछ ही हिन्दू, सिख ज़िन्दा बच सके थे। इस गाँव की 70 औरतों को अग़वा कर लिया गया।

* मछिआं गाँव पर हमला 11 मार्च को हुआ। यहाँ तक़रीबन 200 लोगों का क़त्लेआम हुआ। औरतों और बच्चों को अग़वा कर लिया गया। गुरुद्वारे को आग लगा दी गई।

* रावलपिण्डी के मशहूर गाँव धुडियाल पर पहला हमला 12 मार्च को हुआ, जिसका मुक़ाबला हिन्दुओं और सिखों ने बड़ी कामयाबी से किया। अगले दिन 13 मार्च की शाम को दुबारा ज़बरदस्त हमला किया गया। हिन्दुओं और सिखों के ज़्यादातर घर, 4 गुरुद्वारे, ईरान-हिन्द बैंक, और ख़ालसा हाई स्कूल जला दिये गये। 8 सिख इस हमले में शहीद हुये। मिलिट्री के आने से दंगाई भाग गये। यहाँ यह ख़्याल रहे कि तब तक सांझा मिलिट्री थी। तब तक पाकिस्तान बनाये जाने का ऐलान ब्रिटिश हुकूमत की तरफ़ से नहीं हुआ था।

* हिन्दुओं-सिखों के उस क़त्लेआम की मुहम्मद अली जिन्नाह समेत मुस्लिम लीग के किसी भी बड़े रहनुमा ने निन्दा नहीं की, मज़म्मत नहीं की, हालांकि अमन कायम करने की अपील ज़रूर जिन्नाह ने की। अमन करने के लिये कहना अलग बात है और हज़ारों बेगुनाहों के क़त्ल की मज़म्मत करना, उस पर ग़म का इज़हार करना अलग बात है।

* मार्च के क़त्लेआम के बाद रावलपिण्डी समेत पोठोहार के इलाके में बाक़ी बचे हिन्दुओं और सिखों के क़त्लेआम का दूसरा दौर अगस्त के महीने में चला।