भाग 4 – पोठोहार में हिन्दू-सिख क़त्लेआम । पाकिस्तान की स्थापना ।

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मेहरबानी करके पूरी विडियो देखें/सुनें। इस विडियो के कुछ नुक्ते इस प्रकार हैं: –

* दिसम्बर, 1946 और जनवरी, 1947 में हज़ारा में और मार्च, 1947 में पोठोहार में हिन्दुओं और सिखों के साथ जो हुआ, वही कुछ अगस्त का महीना आते-आते ईस्ट पंजाब में मुसलमानों के साथ होना शुरू हो गया। हज़ारा और नॉर्थवेस्टर्न फ्रंटियर प्रोविन्स के दूसरे हिस्सों, पोठोहार और वेस्ट पंजाब के दूसरे हिस्सों, और सिन्ध से लाखों हिन्दू और सिख रिफ्यूजी ईस्ट पंजाब में अमृतसर, फिरोज़पुर, जालंधर, पटियाला वग़ैरह जगहों पर पहुँच चुके थे। हज़ारा के क़त्लेआम के बाद वहाँ के हज़ारों हिन्दू-सिख तो जनवरी, 1947 में ही रिफ्यूजी कैम्पों में पहुँच चुके थे। मार्च, 1947 के पोठोहार क़त्लेआम के बाद वहाँ से बहुत हिन्दू-सिख ईस्ट पंजाब चले गये थे। लाहौर से भी जून के बाद बहुत हिन्दू-सिख ईस्ट पंजाब पहुँच रहे थे।

* ईस्ट पंजाब के शहरों, कस्बों, गाँवों, हर जगह हिन्दू-सिख शरणार्थी दिख रहे थे। वो शरणार्थी जहाँ-जहाँ जाते, अपने पर हुये ज़ुल्मों की दास्तानें सुनाते। इससे ईस्ट पंजाब के बहुत सारे हिन्दुओं और सिखों में ग़ुस्सा फैलने लगा और वो लोग बदले की भावना से भरने लगे। पंजाब की पुलिस में मुस्लिम मेजोरिटी थी, जिसकी वजह से ईस्ट पंजाब में मुसलमानों पर बड़े लेवल पर हमले नहीं हुये थे। लेकिन अगस्त में फ़ौज की तरह पुलिस भी इण्डिया और पाकिस्तान में बाँट दी गयी। मुसलमान पुलिसवाले पाकिस्तान जाना शुरू हो गये। इससे ईस्ट पंजाब के दंगाइयों के हौसले बढ़ गये। उन्होंने बड़ी प्लानिंग से मुसलमानों पर हमलों करने शुरू कर दिये। बड़ी प्लानिंग से फण्ड इकट्ठे किये गये और दंगाइयों को हथियार और दूसरा सब सामान मुहैया कराया गया।

* ईस्ट पंजाब में शुरू हुये मुसलमानों के क़त्लेआम से बच निकले मुसलमान रिफ्यूजीज़ पाकिस्तान के दूसरे इलाक़ों की तरह पोठोहार में भी पहुँचने शुरू हुये। उन्होंने वहाँ पहुँचकर अपने साथ हुये ज़ुल्मों की बातें बताना शुरू किया। उन्होंने अपने ख़ानदान के लोगों के क़त्लों के बारे में बताया। उन्होंने अपनी औरतों के अग़वा होने की बातें बताईं। उन्होंने अपने माल-असबाब लूटे जाने की बातें बताईं। उनको उनके घरों से जबरी निकाले जाने की बातें बताईं। इससे वहाँ के मुसलमानों में ग़ुस्सा फैल गया। ईस्ट पंजाब में हो रहे मुसलमानों के क़त्लेआम का बदला अब पोठोहार के बचे-खुचे हिन्दुओं और सिखों से लिया जाने लगा।

* मार्च, 1947 में हिन्दू-सिखों पर हमले करने के जुर्म में जो लोग जेलों में थे, उनको पाकिस्तान बनते ही रिहा कर दिया गया। जेल से बाहर आये वो दंगाई इसको इस बात का संकेत मानने लगे कि हिन्दुओं, सिखों पर हमले करने, क़त्ल करने, रेप करने, और लूटपाट करने की उनको खुली छुटी है।

* पोठोहार में हुये अगस्त, सितम्बर के क़त्लेआम के बारे में कुछ ख़ास डेटा नहीं मिलता। इससे बहुत लोग इस ग़लतफ़हमी में रह जाते हैं कि पोठोहार में हिन्दुओं, सिखों का क़त्लेआम ख़ास तौर पर मार्च, 1947 में ही हुया था। ऐसा ख़्याल बिल्कुल ग़लत है। अगस्त, सितम्बर के क़त्लेआम के बारे में कुछ ख़ास डेटा नहीं मिलने की वजह यह है कि अगस्त, सितम्बर के क़त्लेआम में से इतने हिन्दू और सिख भी नहीं बच सके, जो क़त्लों के बारे में कुछ बता पाते।

* मेरे दादा जी, और दूसरे कई और बुज़ुर्ग रिश्तेदारों की बताई क़त्लेआम की कई वारदातें किसी भी लिस्ट में नहीं मिलती हैं। इससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि ज़्यादा घटनाओं को दर्ज ही नहीं किया गया।

* जो मज़लूम हिन्दू, सिख पाकिस्तान के कबाइली इलाक़ों से निकलकर भारत आने की बजाय अफ़ग़ानिस्तान चले गये, उनके साथ क्या-क्या ज़ुल्म हुये, इसका ज़िक्र किसी ने भी नहीं किया। आपको शायद एक भी ऐसा लेखक नहीं मिलेगा, जिसने अफ़ग़ानिस्तान गये हिन्दू, सिखों की बात लिखी हो।

* 15 अगस्त को पाकिस्तान एक अलग मुल्क के तौर पर वजूद में आया। उसी सुबह रावलपिण्डी में कुछ हिन्दुओं, सिखों को छुरे मारे गये। अगले दिन करतारपुरा मुहल्ले में कई हिन्दू-सिख क़त्ल कर दिये गये। 17 अगस्त को ख़ालसा कॉलेज और ख़ालसा स्कूल पर हमला करके वहाँ तोड़फोड़ की गई।

* 18 अगस्त को ईद थी। ईद की नमाज़ पढ़ने के बाद दंगाइयों की भीड़ें शहर के अलग-अलग हिस्सों में फैल गयीं और हिन्दू-सिखों को क़त्ल करना शुरू कर दिया था। हिन्दू-सिखों के घरों और दुकानों को लूट लिया गया। गुरुद्वारों और मन्दिरों पर हमले किये गये। गुरु ग्रन्थ साहिब को आग लगा दी गयी और मन्दिरों की मूर्तियों को तोड़ दिया गया।

* 11 सितम्बर को तक़रीबन 200 नॉन-मुस्लिम मिलिट्री की हिफ़ाज़त में 11 ट्रकों में सवार हो कर रावलपिण्डी से रवाना हुये। उनको रोककर दो बार उनकी बारीकी से तलाशी ली गयी। जब वो रावलपिण्डी से तक़रीबन 6 मील की दूरी तक ही गये थे, तो उनपर हथियारबन्द लोगों ने हमला कर दिया। इन 11 ट्रकों की हिफ़ाज़त के लिये साथ गयी मिलिट्री के लोग सड़क के किनारे बैठ गयी और इन हिन्दुओं-सिखों की कोई मदद नहीं की। इन 11 ट्रकों में से 2 ट्रक तो अपने लोगों को लेकर वापस रावलपिण्डी जाने में कामयाब रहे। बाक़ी के 9 ट्रकों के तक़रीबन सभी लोगों का क़त्लेआम कर दिया गया। कई लड़किओं को अग़वा कर लिया गया।