(इरान में पैदा हुए जगजीवन जोत सिंघ आनंद (Meet Jagjivan Jot Singh Anand On FaceBook) फ़ारसी भाषा के विद्वान हैं. गुरु गोबिंद सिंघ जी के ‘ज़फ़रनामा’ का हिन्दी कविता में अनुवाद करने के लिए उन्हें जाना जाता है. जनवरी, २००८ में उन्होंने अमृत पाल सिंघ ‘अमृत’ से साक्षात्कार किया. मुख्य मुद्दा ‘अखण्ड भारत’ रहा. उस साक्षात्कार का हिन्दी रूपान्तर हम यहाँ प्रस्तुत करते हैं.)
जगजीवन जोत सिंघ: कृपया अपने पारिवारिक पृष्ठ्भूमि के बारे में बताएं.
‘अमृत’: मूलतः, मैं ऋषियों के वंश से सम्बन्ध रखता हूँ. मेरे पूर्वज वैदिक संत और विद्वान थे. सही-सही समय का पता नहीं है कि वे कब वर्तमान पाकिस्तान के सरहदी सूबे में बस गए. वे वहाँ भूमिपति थे और उन में से कई कृषक बन गए.
हमारा गांव ‘मुहाड़ी’ सूबा सरहद की एबटाबाद तहसील में था (अब एबटाबाद ज़िला है).
जब गुरु गोबिन्द सिंघ साहिब ने सन १६९९ में खंडे की पाहुल चखाई, उन्होंने भाई साहिब भाई रोचा सिंघ जी को सूबा सरहद आदिक इलाकों में गुरुमत का प्रचार करने के लिए नियुक्त किया. मेरे पूर्वज गुरुवाणी की शिक्षाओं से अति प्रभावित हुए.
रणजीत सिंघ के राज्य के दौरान और उस के उपरान्त पंजाब में सदाचारक मूल्यों में गिरावट आ रही थी. उन दिनों, मेरे पूर्वज पण्डित रूप लाल जी ने अपने बेटे को अमृतधारी सिख बनने को कहा.
तब से ले कर अब तक, मेरे वंश में हरेक पुरुष अपने विवाह से पूर्व अमृतधारी बना. इस का अभिप्राय यह है कि मेरे प्रपितामा के प्रपितामा, मेरे प्रपितामा के पितामा, मेरे प्रपितामा के पिता, मेरे प्रपितामा, मेरे पितामा, मेरे पिता और मैं स्वं अमृतधारी माता-पिता के घर पैदा हुए.
१९४७ में भारत-पाकिस्तान बटवारे के पश्चात मेरे पिता (वह तब बच्चे ही थे), दादा जी और परदादा (प्रपितामह) भारत आ गए.
मेरे पिता भाई अवतार सिंघ जी (स्वर्गीय) सिख ग्रन्थों के विद्वान और धर्म-प्रचारक थे. भारत के अलग-अलग नगरों के गुरुद्वारों में उन्होंने ग्रंथी एवं कथावाचक के रूप में सेवा की. किसी समय वह शिरोमणि अकाली दल के सदस्य भी रहे. पंजाब प्रान्त आंदोलन में उन्होंने हिस्सा लिया और दो साल कारावास में रहे.
मेरा जन्म १९७२ में चंडीगढ़ में हुआ. मैं पंजाबी में पोस्ट-ग्रेजुएट हूँ.
जगजीवन जोत सिंघ: आप युवायों के लिए गुरुमत क्लास आयोजित करते हो. समान्यतः, इन क्लासों में आप क्या करते हो?
‘अमृत’: मैं अपनी वेबसाईट के लिए व्यस्त रहा हूँ, इस लिए काफी समय से मैं गुरुमत क्लास नहीं ले सका. अब मैं ऐसी क्लासें फिर से शुरू करने का विचार रखता हूँ.
गुरुमत की अपनी क्लासों में हम सिख रहत-मर्यादा एवं गुरु-इतिहास की व्याख्या करते हैं. पहले, हम गुरुमत संगीत और गतका भी सिखाते रहे हैं. मैं हमेशा इस तथ्य पर ज़ोर देता रहा हूँ कि श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी में अलग-अलग पंथों/जातिओं/भाषायों से सम्बंधित पवित्र आत्मायों की पवित्र वाणी शामिल है. इस तरह, श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी हमें वैश्विक भाईचारे की महान शिक्षा देते हैं. गुरुमत में अतिवाद के लिए कोई जगह नहीं है. सर्वशक्तिमान वाहेगुरु मुसलमान शेख फ़रीद जी और हिंदू भक्त रामानंद जी में कोई भेदवाद नहीं करता, और एक सच्चा सिख भी ऐसा भेदभाव नहीं करता.
जगजीवन जोत सिंघ: … और युवायों का इस प्रति क्या प्रतिकर्म होता है?
‘अमृत’: हर कोई गुरु ग्रन्थ साहिब जी के प्रेम, शान्ति, समरसता एवं वैश्विक भाईचारे के सन्देश को मानता है.
जगजीवन जोत सिंघ: हमें अपनी वेबसाइट अमृत्व्ल्ड डोट कोम के बारे में बताएं.
‘अमृत’: पाँच वर्ष पूर्व मैंने अमृत्व्ल्ड डोट कोम एक छोटी वेबसाइट के रूप में शुरू की थी और आहिस्ता-आहिस्ता इस की पहचान बनी. अमृत्व्ल्ड डोट कोम पर विश्व के हरेक कोने से आगन्तुक आते हैं.
गुरुमत के सन्देश का प्रचार करना अमृत्व्ल्ड डोट कोम का मुख्य उद्देश्य है. अमृत्व्ल्ड डोट कोम का मिशन ‘मिशन स्टेटमैंट’ में परिभाषित किया गया है, जो कि वेबसाइट पर उपलब्ध है.
हमारे धार्मिक एवं राजनैतिक विचार मेमोरंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग में दिए गए हैं, जो कि हमारी वेबसाइट पर उपलब्ध है.
जगजीवन जोत सिंघ: यह आश्चर्यजनक है कि आप जैसा एक सिख वेबसाइट अमृत्व्ल्ड डोट कोम पर अखण्ड भारत की बात कर रहा है.
‘अमृत’: ये शब्द भारतीय सिखों की रोज़ाना प्रार्थना का हिस्सा हैं, “हे अकाल पुरख, अपने पंथ दे सदा सहाई दातार जीओ ! श्री ननकाना साहिब ते होर गुरुद्वारेयाँ गुरधामाँ दे, जिन्हा तों पंथ नू विछोड़िया गया है, खुल्ले दर्शन दीदार ते सेवा संभाल दा दान खालसा जी नू बक्शो.”
भारतीय सिखों की यह प्रार्थना केवल तभी पूर्ण हो सकती है, जब अखण्ड भारत के रूप में पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश की कनफेडरेशन अस्तित्व में आ जाये. इसलिए, एक सिख की हैसियत से, यह स्वभाविक है कि मैं अखण्ड भारत का समर्थन करता हूँ.
१९४७ में भारत-पाकिस्तान के बटवारे से हरेक सम्प्रदाय प्रभावित हुआ, परन्तु सिख सब से अधिक प्रभावित हुए. पाकिस्तान बनने जा रहे इलाके में रहते सिखों का एक बड़ा हिस्सा भारत आ गया. सिखों का एक छोटा-सा हिस्सा पाकिस्तान में ही रहा. कुछ एक ने इस्लाम कबूल कर लिया. और, हम सिखों के उस हिस्से को तो भूल ही जाते हैं, जो तब अफ़गानिस्तान में जा बसा. सिख अपने पंथ के जन्म-अस्थान श्री ननकाना साहिब से बिछुड़ गए. बहुत सारे हिन्दुओं की तरह, जिनको १९४७ में पाकिस्तान छोड़ने पर मजबूर किया गया, सहस्रों सिख भी खाली हाथ भारत पहुंचे. उनमें से बहुत पाकिस्तान में भूमिपति थे. उनके पास कोई और विकल्प नहीं था, सिवा इस के कि वे शरणार्थी शिविरों में रहते. मेरे प्रपितामह, पितामह और पिता जी को अपने प्रिय गाँव को छोड़ कर अपने परिवार के साथ भारत आना पड़ा.
एक सिख की हैसियत से, और सूबा सरहद (अब खैबर पख्तूनख्वा) के पुत्र की हैसियत से, मैं पक्का विश्वास रखता हूँ कि मेरा ‘सूबा’ ही मेरे देश भारत की असली ‘सरहद’ है.
जगजीवन जोत सिंघ: अखण्ड भारत का आपका कॉन्सेप्ट क्या है?
‘अमृत’: यह एक बिल्कुल सादा कॉन्सेप्ट है. वर्तमान पाकिस्तान, भारत और बांग्लदेश को फिर से एकीकृत हो जाना चाहिए. और यह सम्भव भी है.
यदि ये तीन देश एकदम से एक देश के रूप में एकीकृत नहीं हो सकते, तो कम से कम उन को तीन स्वतन्त्र देशों की कन्फेडरेशन अवश्य बना लेनी चाहिए.
भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश कन्फेडरेशन को आरम्भ में तीन स्वतंत्र देशों की कन्फेडरेशन के रूप में कार्य करना चाहिए. इन सभी तीन देशों के संयुक्तराष्ट्र में अलग-अलग प्रतिनिध हों.
अन्दरूनी तौर पर, इन तीनों देशों की अलग-अलग संसदें हों. वर्ष में एक या दो बार (या जैसी आवश्यक्ता हो) इन तीनों देशों की संसदों की सांझा बैठक हो सकती है.
सशस्त्र सेनायों को अपने अपने देश में कार्य करना चाहिए, पर तीनों देशों के सेना प्रमुखों की एक समिति का गठन हो.
तीनों देशों की सरहदें हो सकती हैं, परन्तु लोग आसानी से उपलब्ध आज्ञा पत्र ले कर सरहद पार कर सकें. पासपोर्ट और विज़ा की कोई आवश्यक्ता न हो.
एक बार जब यह लक्ष्य प्राप्त कर लिया जाये, तो आगे के कदम उठाये जा सकते हैं. बाद में, और पड़ोसी देशों, जैसे श्री लंका और बर्मा (यहाँ तक कि इण्डोनेशिया, नेपाल, मलेशिया और थाईलैंड) आदि को भी इस कन्फेडरेशन में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया जा सकता है.
अन्त में, इस कन्फेडरेशन के सभी देश एक एकल देश के रूप में उभर सकते हैं, जो बिना शक एक शान्तिप्रिय विश्वशक्ति होगा.
यह सब कुछ कदम दर कदम करने के कारण है. इस की व्याख्या करने के लिए एक अलग लेख की आवश्यकता है.
बहुत से मुद्दे ऐसे हैं, जिन के और स्पष्टीकरण और व्याख्याएं चाहियें, जो कि मैं भविष्य में अपनी वेबसाइट पर करूँगा.
जगजीवन जोत सिंघ: अखण्ड भारत की आवश्यक्ता क्यों है?
‘अमृत’: हम मानें या न, परन्तु यह सच्चाई है कि विश्व शक्तियाँ, जैसे अमेरिका, हमारे (भारत और पाकिस्तान) आंतरिक मामलों में दखल देती हैं. अभी हाल में ही, अमेरिका के कुछ नेताओं द्वारा यह कहा गया था कि वे पाकिस्तान के भीतर तक भी आक्रमण करेंगे, चाहे पाकिस्तान ऐसा करने की आज्ञा न भी दे. इसी तरह, श्री लंका और भारत के बीच के समुद्र (राम सेतु का क्षेत्र) पर अमेरिका का विचार भी एक तरह से हमारे मामलों में उस का दखल ही है. एक सशक्त अखण्ड भारत इस सब को रोक सकता है.
(नोट: इस साक्षात्कार के बहुत बाद, पाकिस्तान के भीतर अमेरिका द्वारा ड्रोन हमलों, पाकिस्तान की आज्ञा के बिना ही पाकिस्तान के भीतर एबटाबाद नगर में उसामा बिन लादेन को मर कर उसका मृतक शरीर तक उठा कर ले जाना और नाटो सेनाओं द्वारा पाकिस्तान के २८ सेना कर्मियों को मार डालने की घटनाओं ने बहुत पहले से की गयी अमृत पाल सिंघ ‘अमृत’ की इन टिप्पणियों को सत्य सिद्ध कर दिया है).
पाकिस्तान का हर प्रान्त एक अलग जातीय समुदाय से जुड़ा है. पाकिस्तान के बहु-भाषीय और बहु-सामुदायक स्वभाव की तरफ इसके शासकों ने कभी ध्यान नहीं दिया. सामुदायक अंतर्विरोध १९७१ में अपने शीर्ष पर पहुंचा, जब बंगालियों ने विद्रोह किया और बांग्लादेश की स्थापना के साथ पाकिस्तान दो भागों में बंट गया. शिया और सुन्नी समुदायों के बीच हिंसा पाकिस्तान में आम है. एक ब्रिटिश पत्रिका ‘द इक्नोमिक्स’ ने पाकिस्तान को ‘विश्व का सबसे ख़तरनाक स्थान’ कहा है. इस वक्तव्य में कुछ सच्चाई हो सकती है. विभिन्न समुदायों में विवाद किसी भी देश को सबसे ख़तरनाक स्थान में बदल सकता है. पाकिस्तान के वर्तमान राजनैतिक हालात से ऐसा लगता है कि हमारे नेतायों ने अभी सबक नहीं सीखा है. अखण्ड भारत पाकिस्तान और भारत के अलगाववादी आन्दोलनों का शान्तिपूर्ण समाधान हो सकता है. भारत और पाकिस्तान का संघ अपने आप में ही जम्मू और काश्मीर के मुद्दे का स्थाई हल हो सकता है.
पाकिस्तान धार्मिक आधार पर बनाया गया था. १९४७ में जब भारत को दो देशों में बाँटा गया था, तब न केवल धरती, बल्कि ब्रिटिश भारतीय सेना, इंडियन सिविल सर्विसिस और अन्य प्रशासनिक सेवाएं, रेलवेज़, केन्द्रीय कोष और अन्य सामान भी भारत और पाकिस्तान में बाँटा गया था. परन्तु, वे गुरु नानक देव जी, शेख फरीद जी शक्कर गंज, साईं मियाँ मीर जी, बाबा बुल्ले शाह आदिक को आपस में बाँटना भूल गए थे.
गुरु नानक देव चाहे हिन्दुयों/सिखों के गुरु हैं, वह बहुत से मुसलामानों के लिए पीर भी हैं.
नानक शाह फ़कीर.
हिंदू का गुरु, मुसलमान का पीर.
यहाँ तक, कि पाकिस्तान का राष्ट्रीय कवि, इक्बाल भी गुरु नानक को इन शब्दों में श्रधांजलि देता है: –
फिर उठी आखिर सदा तौदीद की पंजाब से.
हिन्द को इक मर्द-ए-कामिल ने जगाया खाब से.
गुरु नानक का ननकाना साहिब वर्तमान पाकिस्तान में स्थित है. भारतीय सिख गुरु नानक साहिब के ननकाना साहिब के लिए लालायत रहते हैं. पाकिस्तान के मुसलमान अजमेर शरीफ और रोज़ा शरीफ के लिए लालायत रहते हैं.
राय बुलार और नवाब दौलत खान से लेकर गनी खान और नबी खान तक, मुसलमानों की एक लम्बी सूची है, जिन्होंने सिखों के गुरुयों की श्रद्धा से सेवा की.
न केवल पाकितान के आम मुसलमान, बल्कि पाकिस्तान के कई उच्च नेता भी गुरुयों प्रति आदर प्रकट करने के लिए श्री अमृतसर साहिब के श्री हरिमन्दिर साहिब की यात्रा करते हैं. मुझे याद है कि मौलाना फज़ुलू उर रहमान, जो कि सूबा सरहद (अब खैबर प्ख्तुन्ख्वा) से तालिबान के हिमायती इस्लामिक विद्वान और जमायत-इ-उलेमा-इस्लाम के प्रमुख हैं, ने भी श्री दरबार साहिब, अमृतसर साहिब के दर्शन किये थे. यहाँ तक कि पाकिस्तान के एक राष्ट्रपति ने गुरुयों के प्रति श्रद्धा प्रकट करते हुए श्री दरबार साहिब, अमृतसर साहिब के लिए गलीचा (कारपेट) भी भेजा था.
बाबा फ़रीद के वंशज सईद अफज़ल हैदर, जो तब पाकिस्तान के क़ानून मंत्री थे, ने गुरु ग्रन्थ साहिब में शामिल सुखमनी साहिब फ़ारसी, रोमन, शाहमुखी और गुरमुखी समेत पाँच लिपियों में लिपियंत्र किया था. शौकत अली और मरहूम नुसरत फ़तेह अली खान जैसे सुप्रसिद्ध पाकिस्तानी गायकों ने गुरुवाणी का गायन किया है.
१९९९ में श्री आनंदपुर साहिब, पंजाब (भारत) में खालसा पंथ की त्रिशताब्दी जश्नों में कई पाकिस्तानी मुसलमानों ने हिस्सा लिया था.
पाकिस्तान की यात्रा के दौरान मेरे पिता जी, भाई अवतार सिंघ जी (स्वर्गीय) ने एक पाकिस्तानी मुसलमान से पूछा, “आप सिखों को साईं मियां मीर जी की दरगाह की खुले रूप से ज़िआरत करने की आज्ञा क्यों नहीं देते?”
वह पाकिस्तानी मुसलमान मुस्कुराया और बोला, “आप लोग उस दरगाह को भी सिख स्थल बताना आरम्भ कर दोगे, क्योंकि साईं मियाँ मीर जी गुरु अर्जुन देव जी के घनिष्ठ मित्र थे.”
एक आम सिख यह महसूस ही नहीं करता कि साईं मियां मीर जी और शेख फरीद जी किसी ‘और’ सम्प्रदाय से सम्बन्धित थे. भारतीय पंजाब के फरीदकोट में बाबा शेख फ़रीद आगमन पर्व एक ‘सिख’ पर्व है. इस पर्व के दौरान सिख ‘नगर कीर्तन’ (शोभा यात्रा) तक निकालते हैं. तिल्ला बाबा फ़रीद और गोदड़ी साहिब गुरद्वारे हैं, मस्जिदें नहीं. दूसरी और, पाकपटन (पाकिस्तान) में शेख फरीद साहिब का अस्थान एक मुस्लिम दरगाह है.
गुरु नानक देव जी के शिष्य भाई मर्दाना जी के वंशजों ने १९४७ में पाकिस्तान जाने का फ़ैसला किया, क्योंकि वे खुद को मुस्लमान मानते थे. वे अब भी भारत आते हैं और गुरद्वारों में अपने प्रिय गुरुजनों की वाणी गाते हैं.
अखण्ड भारत के रूप में एक संघ भारतीय सिखों की आवश्यकता है, ताकि वे श्री ननकाना साहिब आदिक गुरद्वारों की बेरोक-टोक यात्रा और गुरद्वारों का प्रबंधन कर सकें.
ये शब्द भारतीय सिखों की रोज़ाना प्रार्थना का हिस्सा हैं, “हे अकाल पुरख ! आपणे पंथ दे सदा सहाई दातार जीयो ! श्री नानकाणा साहिब ते होर गुर्द्वारेयाँ, गुरधामाँ दे, जिन्हा तों पंथ नूँ विछोड़ेया गया है, खुल्ले दर्शन दीदार ते सेवा संभाल दा दान खालसा जी नूँ बक्शो”.
ऐतिहासिक गुरद्वारे बांग्लादेश में भी हैं.
ऐसा संघ पाकिस्तानी और बांग्लादेशी सिखों के लिए भी आवश्यक है, ताकि वे भारत में स्थित गुरद्वारों के बेरोक-टोक दर्शन कर सकें.
इस क्षेत्र के हिन्दुयों और मुसलमानों को भी यही लाभ होगा, क्योंकि वे भी संघ में स्थित अपने धार्मिक स्थलों की यात्रा कर पायेंगे. प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ कटासराज समेत कई और हिन्दू अस्थान अब पाकिस्तान में हैं. अजमेर शरीफ, रोज़ा शरीफ और हजरत निज्जामुद्दीन की दरगाहें आदि मुसलमानों के धार्मिक स्थल भारत में हैं.
बहुत-से मुसलमान १९४७ में भारत में सिख बन गए. वे वाहेगुरु में विश्वास करते हुए बड़े हुए, जबकि उनके और परिवार वाले सरहद की दूसरी ओर अल्लाह में यकीन रखते हैं. वे पाकिस्तान में रहते अपने रिश्तेदारों से मिलना चाहेंगे. इसी तरह, बहुत से सिख और हिन्दू पाकिस्तान में मुस्लमान बन गए. वे भारत में रहने वाले अपने सम्बन्धियों से मिलना चाहेंगे. हज़ारों ऐसे मुसलमान, सिख और हिन्दू थे, जिन्होंने अपना सम्प्रदाय तो नहीं बदला, परन्तु १९४७ में सरहद पार नहीं कर पाए. वे भी सरहद की दूसरी तरफ रहने वाले अपने सम्बन्धियों से मिलने को लालायत रहते हैं. ऐसे लोगों की भावनाएं और आंसू चाहते हैं के अखण्ड भारत बने.
अखण्ड भारत का संघ क्षेत्र की आर्थिक प्रगति के लिए भी अच्छा रहेगा. भारत-पाकिस्तान-बांग्लदेश के संघ से और भी कई लाभ प्राप्त होंगे.
जगजीवन जोत सिंघ: अखण्ड भारत के इस विचार का लोग कैसे जवाब देते हैं?
‘अमृत’: अखण्ड भारत के विचार को मैंने भारत में रहने वाले कुछ लोगों के साथ सांझा किया है. मैंने पश्चमी देशों में रहने वाले भारतीय मूल के कुछ लोगों से भी बात की है. हर कोई इस विचार की प्रशंसा करता है. मैं अपनी वेबसाइट पर अखण्ड भारत के मुद्दे पर एक पूरा सेक्शन लाने का इरादा रखता हूँ.
जगजीवन जोत सिंघ: अखण्ड भारत के इस विचार को भारत में किस तरह से लिया जाता है?
‘अमृत’: विकीपीडिया इस प्रकार ज़िक्र करती है:
Akhanda Bharat (Hindi: अखण्ड भारत, literally Undivided India) is a term that refers to regions that had a Hindu majority in the past, before the Muslim conquest in the Indian subcontinent and post-colonial partition. Popular conceptions of Akhand Bharat differ. Some regard Undivided India as Akhand Bharat, while some opine that Afghanistan, Sout-East Asia and even Iran, which come within the Indian sphere of influence form a part of Akhand Bharat. It includes all of the current Republic of India as well as the nation-states of Afghanistan, Bangladesh, Pakistan (particularly the Punjab and Sindh region), Sri Lanka and Myanmar. Apart from Afghanistan, this is basically the same as the formerly-existing Indian Empire which lasted until the end of the colonial era in India in 1947. Akhanda Bharatam is the Sanskrit name for this region.
The geographic frontiers of this region is held to range from the Himalayan region in the north to the ocean in the south, the borders of Bharatavarsha as outlined in the Vishnu Purana.
These regions tended to be predominantly influenced by Dharmic religion and culture prior to the introduction of Christianity and Islam, of which the concept of partition was created. Thus, religious and ethnic nationalism often has an influence on the concept of Akhanda Bharata. The concept is sometimes subscribed to by nationalist Indians as well as Hindu nationalists and organizations such as Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) and political parties such as the Bharatiya Janata Party (BJP).
व्यवहारिक रूप से, ऐसा लगता है कि कोई भी राजनैतिक दल अखण्ड भारत के मुद्दे पर गम्भीर नहीं है. समाचार पत्रों के अनुसार २००५ में अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान भारतीय जनता पार्टी के उस समय के प्रधान लाल कृष्ण अडवाणी ने संघ परिवार के अखण्ड भारत के संकल्प से अपने दल को अलग कर लिया था, यह कहते हुए कि ‘दोनों देशों का अलग प्रभुसत्तासंपन्न राष्ट्रों के रूप में उदय इतिहास की न बदली जा सकने वाली हकीकत है’. उन्होंने आगे कहा, “मैं यह केवल इस लिए कह रहा हूँ, क्योंकि मैंने देखा कि अभी भी बीजेपी की पाकिस्तान के प्रति सोच को लेकर कुछ गलत धारणाएं और झूठा प्रचार है.
लाल कृष्ण अडवाणी के वक्तव्य के जवाब में विश्व हिन्दू परिषद ने प्रस्ताव पारित किया, जो कुछ ऐसे है:
“ऋषि अरबिन्दो से लेकर नई पीड़ी तक, हर कोई अखण्ड भारत के लिए दृढ़ संकल्प है. पाकिस्तान को इतिहास की न बदली जा सकने वाली सचाई बता कर अडवाणी ने अरबिन्दो सहित करोड़ों देशभक्तों का अपमान किया है…”
अखण्ड भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कोई सन्जीदा यत्न नहीं किये गए. हमें यह समझ लेना चाहिए कि अगर हर एक भारतीय अखण्ड भारत बनाने के मुद्दे से सहमत भी हो जाए, तो भी ऐसा तब तक सम्भव नहीं है, जब तक अधिकतर पाकिस्तानी और बांग्लादेशी नागरिक इसका समर्थन न करें. अत: हमें इस संकल्प को पाकिस्तान और बांग्लादेश में सर्वप्रिय बनाना चाहिए.
जगजीवन जोत सिंघ: क्या आप सोचते हैं कि आपके अखण्ड भारत के संकल्प को यदि गुरु नानक देव जी के दर्शनशास्त्र से भरा जाए, जो कि सांझीवालता पर आधारित है, तो सफलता प्राप्त होगी?
‘अमृत’: गुरु नानक देव केवल सिखों से ही सम्बन्धित नहीं हैं. वह मुसलमानों, सिखों और हिन्दुयों के सांझा सन्त हैं. और, यह संदेश मुसलमानों, सिखों और हिन्दुयों के लिए सांझा है.
गुरु नानक देव जी ने कहा था, “काइआ कपड़ु टुकु टुकु होसी हिदुसतानु समालसी बोला ॥ (श्री गुरु ग्रन्थ साहिब, ७२३) अर्थात, “जब तन का कपड़ा तार-तार होगा, तब भारत इन शब्दों को याद करेगा”.
मुझे विश्वास है कि जब-जब हिन्दोस्तान के लोगों की काया का कपड़ा तार-तार होगा, हिन्दोस्तान गुरु नानक देव जी के शब्दों का स्मरण करेगा. १९४७ में तो स्वं हिन्दोस्तान ही विभिन्न देशों के रूप में तार-तार हो गया था. क्या हिन्दोस्तान को गुरु नानक के बोल याद नहीं करने चाहिए? सच्चाई भरे गुरु नानक के शब्द आज भी सच्चे हैं, “सच की बाणी नानकु आखै सचु सुणाइसी सच की बेला ॥” (श्री गुरु ग्रन्थ साहिब, ७२३). अर्थात, “नानक सच की वाणी कहता है, वह अभी, सही समय पर, सच का ऐलान करता है”.
गुरु नानक देव जी के शब्द अभी भी प्रसांगिक हैं. यदि हम मुसलामानों के पीर ‘नानक शाह’ और हिन्दुयों के गुरु ‘गुरु नानक देव’ के वैश्विक भाईचारे, शान्ति और प्रेम के संदेश का अनुसरण करें, तो मुझे विश्वास है कि अखण्ड भारत का संकल्प बड़ा फलदायक है.
जर्मनी १९४९ में दे देशों के रूप में बंट गया था. जर्मनों ने अपनी भूल को समझा और १९९० में दोनों देश फिर से एकीकृत हुए और एक देश के रूप में उभरे. पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश ऐसा क्यों नहीं कर सकते?
जगजीवन जोत सिंघ: इन दिनों पंथ किस प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रहा है? …उनका हल?
‘अमृत’: बहुत सी चुनौतियां हैं, पर सबसे बड़ी चुनौती उनके द्वारा दी गई है, जो सिखों के मन में गुरुवाणी प्रति संदेह पैदा करने का यत्न कर रहे हैं.
खोज भरे लेख और पुस्तकों की आवश्यकता है, जो ऐसे लोगों द्वारा किये जा रहे दावों को गलत साबित करें. सिख प्रचारकों को शानदार प्रशिक्षण उपलब्ध करवाया जाना चाहिए. खोज से भरी पुस्तकों का प्रयोग केवल प्रचारक ही करते हैं. वे इन खोज कार्यों का प्रयोग करके आगे जन साधारण को समझाएं.
अच्छे पढ़े-लिखे और समर्पित प्रचारकों की कमी है. एक अच्छा प्रचारक एक या दो साल में नहीं बनता. एक विद्वान को अच्छा प्रचारक बनने में लम्बा समय लगता है. अत: हमें लम्बे समय की सही नीति की आवश्यकता है.