(अमृत पाल सिंघ ‘अमृत’)
किसी भी विचार या सिद्धांत का विश्व में प्रसार प्रचार से ही होता है. किसी विचार या सिद्धांत का प्रचार करने वाले को प्रचारक कहा जाता है. किसी भी विचारधारा का प्रचार करना कोई आसान कार्य नहीं होता. किसी प्रचारक की सफलता बहुत से बिन्दुओं पर निर्भर रहती है. प्रचारक की सफलता सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, पारिवारिक और आर्थिक स्थितिओं से प्रभावित होती है.
किसी समाज की बनावट किसी प्रचारक की सफलता में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. किसी दकियानूसी समाज में आधुनिक विचारधारा का प्रचारक स्वयं को बहुत कठिन स्थिति में फँसा हुआ देखता है. उदहारण के तौर पर, नारी के प्रति बहुत तंग सोच रखने वाले समाज में नारी को सम्पूर्ण स्वतंत्रता देने वाली विचारधारा के प्रचारक को प्रचार करने में बड़ी कठिनाई होगी. नारी को सम्पूर्ण स्वतंत्रता देने की उस की सोच उस को लम्पट घोषित करवा सकती है.
यदि कोई प्रचारक किसी कम्यूनिस्ट देश में पूँजीवाद का प्रचार करना चाहे, तो वह अपने प्राणों को संकट में डाल रहा होगा. किसी इस्लामिक देश में इस्लाम का प्रचार करने से किसी कम्यूनिस्ट देश में इस्लाम का प्रचार करना निश्चित ही इतना आसान नहीं होगा. इस्लाम के प्रचारक को जो सुविधा इस्लामिक निज़ाम में मिल सकती है, वह किसी और राजनैतिक सिस्टम में प्राप्त नहीं हो सकती. किसी देश में किसी विशेष राजनैतिक दल की सरकार किसी विचारधारा के प्रचार में बहुत सहायक भी हो सकती है और बहुत बड़ी रुकावट भी बन सकती है. कई बार कोई विचारधारक लहर किसी विशेष सत्ताधारी राजनैतिक दल के लिए राजनैतिक या रणनीतिक तौर पर लाभदायक हो, तो ऐसा राजनैतिक दल गुप्त या खुले तौर पर उस लहर की जम कर सहायता करता है. भारतीय पंजाब में दो प्रमुख राजनैतिक दलों में से एक सिरसा शहर वाले डेरा सच्चा सौदा का विरोध करता है और दूसरा समर्थन करता है. ऐसा असल में राजनैतिक कारणों से ही है. ज़ाहिर है कि राजनैतिक स्थितियाँ भी किसी प्रचारक की सफलता या असफलता में अपना योगदान डालती हैं.
कई बार पारिवारिक हालात भी किसी प्रचारक को सफल या असफल कर देते हैं. घर में बीमार पड़े चलने-फिरने से लाचार किसी वृद्ध की सेवा को छोड़ कर प्रचार करना अधिकतर संभव नहीं होता. कई बार पारिवारिक व्यस्तता प्रचार करने के लिए समय ही शेष नहीं छोड़ती. किसी व्यक्ति को अपनी वार्तालाप से आसानी से प्रभावित कर लेने वाला प्रचारक अपने घर के हालात के कारण ही प्रचार करने में असमर्थ हो जाता है. पारिवारिक और निजी कारण किसी प्रचारक की सफलता या असफलता में बड़ा योगदान करते हैं.
किसी प्रचारक की सफलता या असफलता में विशेष योगदान उसकी आर्थिक स्थिति का भी होता है. बौद्ध विचारधारा का जो प्रचार सम्राट अशोक की भारी सहायता से हुआ, वह उस से पहले सम्भव ही नहीं हो सका था. सम्राट की भारी आर्थिक और राजनैतिक सहायता से बौद्ध विचारधारा का प्रचार न केवल भारत में ही, बल्कि विदेशों में भी ख़ूब हुआ. बौद्ध विचारधारा के प्रचारक अशोक से पहले भी मौजूद थे पर उनको वह आर्थिक और राजनैतिक सहयोग नहीं मिल सका था, जो अशोक के समय के बौद्ध प्रचारकों को मिला. अशोक से पहले के बौद्ध प्रचारकों की योग्यता पर शक नहीं किया जा सकता, बस, उन के आर्थिक और राजनैतिक हालात उन को वैसी सफलता न दे सके.
किसी क्षेत्र की संस्कृति भी किसी विशेष विचारधारा के प्रचारक की सफलता में सहायक या अड़चन बनती है. भारतीय प्रचारक ओशो (रजनीश) को जो सफलता संयुक्त राज्य अमरीका में जा कर प्राप्त हुयी, वह केवल भारत में रहने से प्राप्त होनी असम्भव थी. उसकी विचारधारा का सांस्कृतिक पक्ष भारतीय संस्कृति से मेल नहीं खाता था. जब वह भारत आया भी, तो उसकी विशेष विचारधारा उसके अपने आश्रम से बाहर वैसा स्थान प्राप्त करने में सफल न हो सकी.
ऊपर वर्णित कारणों में से कोई एक कारण भी किसी प्रचारक की सफलता या असफलता निर्धारित करने में समर्थ है. कोई बहुत ही योग्य प्रचारक उपरोक्त कारण या कारणों से असफल हो सकता है. दूसरी और, उपरोक्त कारण या कारणों से कोई कम योग्यता रखने वाला प्रचारक भी बड़ी सफलता प्राप्त कर सकता है.