हिन्दू-सिख एकता हमेशा रहेगी

(अमृत पाल सिंघ ‘अमृत’)

हिन्दू धर्म कोई अभी-अभी नहीं शुरू हुया। हिन्दू धर्म कोई ५ साल, १० साल, १०० साल, या २०० साल पहले नहीं शुरू हुया। ऐसे ही, सिक्ख धर्म कोई अभी-अभी नहीं शुरू हुया, कोई ५ साल, १० साल, १०० साल, या २०० साल पहले नहीं शुरू हुया।

सिक्ख धर्म गुरु नानक देव के वक़्त से चला आ रहा है। सिख वह है, जो गुरुओं की शिक्षाओं को मानता है, गुरुवाणी को मानता है, गुरु ग्रंथ साहिब को मानता है। गुरुवाणी आज से कोई ५ साल, १० साल, १०० साल, या २०० साल पहले नहीं लिखी गयी है। गुरु गोबिन्द सिंघ ने १७०८ ई॰ में गुरु ग्रंथ साहिब को गुरु घोषित कर दिया था, हालाँकि सिद्धांतक रूप से गुरुवाणी को हमेशा से ही गुरु का दर्जा दिया जाता रहा है। गुरु ग्रंथ साहिब की शिक्षाओं को मानने वाला ही सिख है।

हिन्दू वह है, जो हज़ारों साल पहले लिखे गये संस्कृत के ग्रन्थों की शिक्षाओं को मानता है। इन ग्रन्थों में वेद, उपनिषद और पुराण शामिल हैं। ६ शास्त्र, महाभारत, और रामायण भी इन धार्मिक ग्रन्थों में शामिल हैं। ये सभी ग्रंथ कोई ५ साल, १० साल, १०० साल, या २०० साल पहले नहीं लिखे गये। ये ग्रंथ हज़ारों साल पहले लिखे गये थे। जो इन ग्रन्थों को मानता है, वह हिन्दू है। जो इन ग्रन्थों की शिक्षाओं पर अमल करता है, वह हिन्दू है।

कोई ५ साल, १० साल, १०० साल, या २०० साल पहले लिखी किसी किताब पर सिख धर्म की बुनियाद नहीं रखी गयी। कोई ५ साल, १० साल, १०० साल, या २०० साल पहले लिखी किसी किताब पर हिन्दू धर्म की बुनियाद नहीं रखी गयी। कोई ५ साल, १० साल, १०० साल, या २०० साल पहले लिखी गयी कोई भी किताब सिखों और हिंदुओं के मूल धर्म ग्रन्थों की जगह नहीं ले सकती। कोई ५ साल, १० साल, १०० साल, या २०० साल पहले हुया व्यक्ति सिखों के गुरु के बराबर की पदवी नहीं ले सकता। कोई ५ साल, १० साल, १०० साल, या २०० साल पहले हुया व्यक्ति वेदिक ऋषि या अवतार की पदवी के बराबर नहीं हो सकता।

सिख के धार्मिक यक़ीन की बुनियाद गुरु ग्रंथ साहिब है, गुरुवाणी है। हिन्दू की धार्मिक आस्था का आधार वेद, उपनिषद, पुराण, और शास्त्र आदि हैं।

जो ख़ुद को सिख तो कहे, मगर गुरुवाणी के अनुसार न चले, वह नकली सिख है, पाखंडी सिख है। जो गुरुवाणी के खिलाफ किसी इंसान या किसी किताब की माने, और ख़ुद को सिख भी कहे, तो वह नकली सिख है, पाखंडी सिख है।

जो ख़ुद को हिन्दू तो कहे, परन्तु वेद, उपनिषद, और शास्त्रों आदि के अनुसार न चले, तो वह नकली हिन्दू है, पाखंडी हिन्दू है। शास्त्र-विरुद्ध किसी व्यक्ति या पुस्तक को मानने वाला नकली हिन्दू है, पाखंडी हिन्दू है।

ये वे पाखंडी लोग हैं, जिन्होने मूल धर्म-ग्रन्थ कभी पढ़े ही नहीं। मूल धर्म-ग्रन्थों को पढ़े बिना ही ये धर्म के ठेकेदार बन बैठे हैं। मूल धर्म-ग्रन्थों को गहराई से जाने बिना ही ये ख़ुद को धर्म रक्षक घोषित कर बैठे हैं। जब इन्होने ख़ुद ही मूल धर्म-ग्रन्थों का अध्ययन नहीं किया, तो उस धर्म का, उस मज़हब का प्रचार कैसे कर सकते हैं? उस धर्म या मजहब की बात भी कैसे कर सकते हैं?

ये जो पाखंडी सिख और पाखंडी हिन्दू हैं, इन में कभी एकता नहीं हो सकती। ये धर्म के रास्ते से भटके हुये हैं। ये समाज में तब तक नफ़रत फैलाते ही रहेंगे, जब तक इन का कोई स्थायी हल नहीं किया जाता।

किसी भी प्रकार के धार्मिक मतभेद कभी भी सच्चे धार्मिक लोगों के लिये नफ़रत का कारण नहीं बन सकते। मूल धर्म ग्रन्थों की शिक्षाओं पर चलने वाले सच्चे सिखों और सच्चे हिंदुओं में कभी आपसी नफ़रत और दुश्मनी नहीं हो सकती। सच्चे हिन्दू और सिख हमेशा ही आपसी प्रेम, सद्भाव, और एकता के हिमायती रहे हैं। इन में हमेशा ही एकता रही है। इन में हमेशा ही एकता रहेगी।

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