Category Archives: Sikhs and Hindus

मित्र राष्ट्रों के हिन्दू-सिख समाज की मदद भी करे भारत सरकार

(अमृत पाल सिंघ ‘अमृत’)

मित्रतापूर्ण सम्बन्धों को बढ़ावा देने के लिये हमारी केन्द्रीय सरकार ने साल 2014 से लेकर जनवरी, 2018 के बीच अफ़ग़ानिस्तान को 2,088 करोड़ रुपये और श्रीलंका को 1,025 करोड़ रुपये दिये हैं।

मित्र राष्ट्रों की मदद करना बहुत अच्छी बात है। सरकार के इस क़दम की मैं प्रशंसा करता हूँ।

भारत एक बहुत बड़ा देश है, जो आर्थिक तौर पर बहुत तेज़ी से उभर कर विश्व के सामने आया है। हम दुनिया की पांच बड़ी सेनाओं में से एक हैं। हम सबसे ज़्यादा आबादी वाले मुल्क़ों में से एक हैं। हम विविध संस्कृतियों और भाषाओं वाला देश हैं।

जब भी विश्व में कहीं भी हिन्दू, जैन, सिख सम्प्रदायों की बात होती है, तो भारत का भी ज़िक्र आ जाता है। यह स्वाभाविक है। ऐसा इसलिये है, क्योंकि हमारा यह देश हिन्दू, जैन, सिख सम्प्रदायों की मातृभूमि (homeland) है। हमारे संविधान के सेक्युलर होने के बावजूद हमारे भारत की यह विश्व भर में एक विशेष पहचान है। यह एक तथ्य है। कोई इस तथ्य को नापसन्द तो कर सकता है, लेकिन झुठला नहीं सकता।

हिन्दू, जैन, सिख सम्प्रदायों की मातृभूमि (homeland) होने की वजह से भारत की इन सम्प्रदायों के उन लोगों के प्रति एक विशेष ज़िम्मेदारी भी बनती है, जो कहीं विदेश में अपने सम्प्रदाय की वजह से ज़ुल्म का शिकार बनते हैं। उनको ज़ुल्मों से बचाने के लिये असरदार क़दम उठाना भारत सरकार की नैतिक ज़िम्मेदारी है।

अफ़ग़ानिस्तान में लम्बे समय से चल रहे गृहयुद्ध की वजह से वहाँ के हिन्दू-सिख समाज को बहुत ज़ुल्मों का शिकार होना पड़ा है। हज़ारों अफ़ग़ान हिन्दू-सिख परिवार अफ़ग़ानिस्तान में अपने घरों को छोड़कर विदेशों में जाने के लिये मजबूर हो गये हैं। जैसा कि स्वाभाविक ही है, बहुत सारे अफ़ग़ान हिन्दू-सिख परिवार भारत में भी आये हैं। इनमें बहुत ऐसे हैं, जिनको अभी तक भारतीय नागरिकता नहीं मिल सकी है।

जो बहुत थोड़े-से हिन्दू-सिख अभी भी अफ़ग़ानिस्तान में रह रहे हैं, उनकी हालत बहुत बुरी है।

ख़ानाजंगी का सामना कर रहे अफ़ग़ानिस्तान के पुनर्निर्माण के लिये भारत समेत कई देशों ने बहुत बड़ी आर्थिक मदद दी है। यह एक अच्छी बात है। लेकिन इसका एक पक्ष यह भी है कि अफ़ग़ान लोगों की मदद के लिये दिये जा रहे इस धन का कोई विशेष प्रयोग अफ़ग़ान हिन्दुओं, सिखों पर नहीं किया जा रहा, जबकि यह सबसे छोटा अफ़ग़ान अल्पसंख्यक समुदाय ही सबसे ज़्यादा नफ़रत का शिकार बना है।

हम अमेरिका जैसे मुल्क़ों से तो यह उम्मीद नहीं कर सकते कि अफ़ग़ानिस्तान को आर्थिक मदद देते वक़्त वे अफ़ग़ान हिन्दू-सिख समाज का विशेष तौर पर ध्यान रखें, लेकिन भारत सरकार से तो हमें यह उम्मीद रखनी चाहिये कि अफ़ग़ान हिन्दू-सिख समाज का विशेष तौर पर ध्यान रखा जाये।

भारत सरकार जब अफ़ग़ानिस्तान सरकार को किसी भी प्रकार की मदद दे, तो उसके साथ यह शर्त भी हो कि अफ़ग़ानिस्तान में रह रहे हिन्दुओं-सिखों की सुरक्षा हो। अफ़ग़ानिस्तान सरकार को आर्थिक मदद देते वक़्त उस धन का एक निश्चित हिस्सा अफ़ग़ान हिन्दू-सिख समाज की भलाई पर भी ख़र्च हो। अफ़ग़ानिस्तान सरकार को दी जा रही आर्थिक मदद का एक हिस्सा ज़रूरी तौर पर उन अफ़ग़ान हिन्दुओं-सिखों पर भी ख़र्च हो, जो भारत में रह रहे हैं।

साल 2014 से अब तक जो तक़रीबन 2,088 करोड़ रुपये अफ़ग़ानिस्तान को दिये गये हैं, अगर उसका बीस प्रतिशत भी अफ़ग़ान हिन्दुओं-सिखों पर ख़र्च किया जाता, तो उनकी बड़ी समस्याओं का समाधान किया जा सकता था।

भारत सरकार ने श्रीलंका सरकार को भी 2014 से अब तक 1,025 करोड़ रुपये दिये हैं। अफ़ग़ानिस्तान की तरह श्रीलंका से भी हिन्दू शरणार्थी भारत आये हैं। जो मेरा सुझाव अफ़ग़ानिस्तान के लिये है, वही सुझाव श्रीलंका के लिये भी है। श्रीलंका को दी जाने वाली आर्थिक मदद का एक निश्चित हिस्सा श्रीलंकाई हिन्दुओं पर ख़र्च होना चाहिये। श्रीलंका को दी जाने वाली आर्थिक मदद का एक निश्चित हिस्सा भारत में रह रहे श्रीलंका के हिन्दू शरणार्थियों पर भी ख़र्च होना चाहिए।

म्यांमार से निकाले गये रोहिंग्या लोगों का हमें भी वैसा ही दुःख है, जैसा पश्चिमी देशों की सरकारों को है। लेकिन हमें अफ़ग़ानिस्तान और श्रीलंका से निकाले गये हिन्दुओं का भी दुःख है। पश्चिमी देशों की सरकारों ने तो अरबों डॉलर अफ़ग़ानिस्तान पर ख़र्च करते वक़्त अफ़ग़ान हिन्दुओं, सिखों के बारे में कभी सोचा भी नहीं।

आख़िर ऐसा कब तक चलता रहेगा कि जिन देशों से हिन्दू सिखों को निकलना पड़ रहा है, भारत सरकार अपने करदाताओं की मेहनत की कमाई उन देशों को देती जाये, बिना वहाँ के हिन्दू-सिख समाज की मदद किये?

A 1947’s Refugee (Punjabi Talk)

We talked to Giani Jaswant Singh ‘Rafla’, a poet and writer. He was born in present day Khyber Pakhtunkhawa, Pakistan, before 1947. He talked about Indo-Pak partition and other issues. The Talk was in Punjabi.

We will translate his views in Hindi and English in near future. For the time being, those who know Punjabi, can listen this first video of our talk with Giani Jaswant Singh ‘Rafla’…

हिन्दू-सिख एकता हमेशा रहेगी

(अमृत पाल सिंघ ‘अमृत’)

हिन्दू धर्म कोई अभी-अभी नहीं शुरू हुया। हिन्दू धर्म कोई ५ साल, १० साल, १०० साल, या २०० साल पहले नहीं शुरू हुया। ऐसे ही, सिक्ख धर्म कोई अभी-अभी नहीं शुरू हुया, कोई ५ साल, १० साल, १०० साल, या २०० साल पहले नहीं शुरू हुया।

सिक्ख धर्म गुरु नानक देव के वक़्त से चला आ रहा है। सिख वह है, जो गुरुओं की शिक्षाओं को मानता है, गुरुवाणी को मानता है, गुरु ग्रंथ साहिब को मानता है। गुरुवाणी आज से कोई ५ साल, १० साल, १०० साल, या २०० साल पहले नहीं लिखी गयी है। गुरु गोबिन्द सिंघ ने १७०८ ई॰ में गुरु ग्रंथ साहिब को गुरु घोषित कर दिया था, हालाँकि सिद्धांतक रूप से गुरुवाणी को हमेशा से ही गुरु का दर्जा दिया जाता रहा है। गुरु ग्रंथ साहिब की शिक्षाओं को मानने वाला ही सिख है।

हिन्दू वह है, जो हज़ारों साल पहले लिखे गये संस्कृत के ग्रन्थों की शिक्षाओं को मानता है। इन ग्रन्थों में वेद, उपनिषद और पुराण शामिल हैं। ६ शास्त्र, महाभारत, और रामायण भी इन धार्मिक ग्रन्थों में शामिल हैं। ये सभी ग्रंथ कोई ५ साल, १० साल, १०० साल, या २०० साल पहले नहीं लिखे गये। ये ग्रंथ हज़ारों साल पहले लिखे गये थे। जो इन ग्रन्थों को मानता है, वह हिन्दू है। जो इन ग्रन्थों की शिक्षाओं पर अमल करता है, वह हिन्दू है।

कोई ५ साल, १० साल, १०० साल, या २०० साल पहले लिखी किसी किताब पर सिख धर्म की बुनियाद नहीं रखी गयी। कोई ५ साल, १० साल, १०० साल, या २०० साल पहले लिखी किसी किताब पर हिन्दू धर्म की बुनियाद नहीं रखी गयी। कोई ५ साल, १० साल, १०० साल, या २०० साल पहले लिखी गयी कोई भी किताब सिखों और हिंदुओं के मूल धर्म ग्रन्थों की जगह नहीं ले सकती। कोई ५ साल, १० साल, १०० साल, या २०० साल पहले हुया व्यक्ति सिखों के गुरु के बराबर की पदवी नहीं ले सकता। कोई ५ साल, १० साल, १०० साल, या २०० साल पहले हुया व्यक्ति वेदिक ऋषि या अवतार की पदवी के बराबर नहीं हो सकता।

सिख के धार्मिक यक़ीन की बुनियाद गुरु ग्रंथ साहिब है, गुरुवाणी है। हिन्दू की धार्मिक आस्था का आधार वेद, उपनिषद, पुराण, और शास्त्र आदि हैं।

जो ख़ुद को सिख तो कहे, मगर गुरुवाणी के अनुसार न चले, वह नकली सिख है, पाखंडी सिख है। जो गुरुवाणी के खिलाफ किसी इंसान या किसी किताब की माने, और ख़ुद को सिख भी कहे, तो वह नकली सिख है, पाखंडी सिख है।

जो ख़ुद को हिन्दू तो कहे, परन्तु वेद, उपनिषद, और शास्त्रों आदि के अनुसार न चले, तो वह नकली हिन्दू है, पाखंडी हिन्दू है। शास्त्र-विरुद्ध किसी व्यक्ति या पुस्तक को मानने वाला नकली हिन्दू है, पाखंडी हिन्दू है।

ये वे पाखंडी लोग हैं, जिन्होने मूल धर्म-ग्रन्थ कभी पढ़े ही नहीं। मूल धर्म-ग्रन्थों को पढ़े बिना ही ये धर्म के ठेकेदार बन बैठे हैं। मूल धर्म-ग्रन्थों को गहराई से जाने बिना ही ये ख़ुद को धर्म रक्षक घोषित कर बैठे हैं। जब इन्होने ख़ुद ही मूल धर्म-ग्रन्थों का अध्ययन नहीं किया, तो उस धर्म का, उस मज़हब का प्रचार कैसे कर सकते हैं? उस धर्म या मजहब की बात भी कैसे कर सकते हैं?

ये जो पाखंडी सिख और पाखंडी हिन्दू हैं, इन में कभी एकता नहीं हो सकती। ये धर्म के रास्ते से भटके हुये हैं। ये समाज में तब तक नफ़रत फैलाते ही रहेंगे, जब तक इन का कोई स्थायी हल नहीं किया जाता।

किसी भी प्रकार के धार्मिक मतभेद कभी भी सच्चे धार्मिक लोगों के लिये नफ़रत का कारण नहीं बन सकते। मूल धर्म ग्रन्थों की शिक्षाओं पर चलने वाले सच्चे सिखों और सच्चे हिंदुओं में कभी आपसी नफ़रत और दुश्मनी नहीं हो सकती। सच्चे हिन्दू और सिख हमेशा ही आपसी प्रेम, सद्भाव, और एकता के हिमायती रहे हैं। इन में हमेशा ही एकता रही है। इन में हमेशा ही एकता रहेगी।

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Encourage Marriages Among Pakistani, Afghanistani And Indian Hindus/Sikhs

(Amrit Pal Singh ‘Amrit’)

Many Pakistani and Afghanistani Hindus and Sikhs want to immigrate permanently to India. Many Indians are seen inciting Pakistani as well as Afghanistani Hindus/Sikhs to immigrate to India, though they are incapable to understand ground realities of immigration. Practically, Pakistani and Afghanistani Hindus and Sikhs are finding it difficult to settle permanently in India. That is why many Pakistani Hindus, who came to India, in due course went back to Pakistan. A few others left for western countries.

Thousands of Hindus and Sikhs were migrated from Pakistan to Indian Kashmir in 1947. Even after 67 years, they are not given basic citizenship of State of Jammu and Kashmir. They cannot vote for the state Assembly and local bodies’ elections but they are allowed to vote in Indian Parliament elections.

Those Hindus and Sikhs, who migrated from Mirpur and other areas of Pakistan occupied Kashmir to Indian Kashmir, have not given their due claims of final settlement even after 67 years. It is so easy for some Indian Hindus and Sikhs to incite Pakistani Hindus and Sikhs to migrate to India, but they never talk about these final settlements.

However, I have a suggestion for Indian Hindus and Sikhs, if they want to do something for the betterment of Hindus and Sikhs of Pakistan and Afghanistan.

Hundreds of Pakistani Muslims are married to Indian Muslims. These matrimonial relations across the border are helpful to create pleasant and friendly relations between people of two countries. If there are strong people-to-people relations between two countries, it is beneficial for both the countries.

There are rare cases of cross-border marriages between Indian and Pakistani Hindus. Hindus and Sikhs should encourage matrimonial alliance between Indian, Afghanistani and Pakistani Hindus and Sikhs. By doing so, many Pakistani and Afghanistani Hindu/Sikh girls can easily be immigrated to India. This will be a slow but very effective process. Such marriages will bring Indian, Afghanistani and Pakistani Hindus and Sikhs close to one another. At present, it seems there is lack of coordination between Pakistani, Afghanistani and Indian Hindus/Sikhs.

Such marriages between Indian and Pakistani Hindus/Sikhs will help reduce tension between the two countries, which is generally caused by politicians.

Cross-border marriages between Indian, Afghanistani and Pakistani Hindus/Sikhs are possible in Punjabi, Kashmiri, and Sindhi as well as other cultural sub-communities.

Indian, Afghanistani, and Pakistani Hindus and Sikhs should think over this option.