#पाकिस्तान । #हिन्दू_मुसलमान । #मुस्लिम_लीग । #मानस_की_जात_सबै_एकै_पहचानबो ।
मेहरबानी करके पूरी विडियो देखिये। इस विडियो में मुख्य मुद्दे इस प्रकार हैं: –
* टू-नेशन थ्योरी की आज के दौर में सार्थकता या relevance पर यह दलील दी जाती है कि पाकिस्तान के क़याम के बाद मुस्लिम नेशन की बात ही नहीं रही, क्योंकि पाकिस्तान बनने के बाद पाकिस्तान में रहने वाले मुसलमान पाकिस्तानी नेशन के तौर पर उभरे हैं। लेकिन, इस दलील ने तो कई और सवाल खड़े कर दिये हैं।
* पाकिस्तान की स्थापना से पहले अखण्ड भारत के सभी मुसलमान एक ही मुल्क में रहने वाले लोग थे। पाकिस्तान की स्थापना ने तो इन मुसलमानों को पाकिस्तानी नेशन और भारतीय नेशन में बाँट कर रख दिया, और पाकिस्तानी नेशन बाद में फिर पाकिस्तानी नेशन और बांग्लादेशी नेशन में बंट गया। टू-नेशन थ्योरी ने मुसलमानों में इत्तिहाद तो क्या लाना था, उल्टा मुसलमानों को ही अलग-अलग नेशन्स में बाँट कर रख दिया।
* हमें भी टू-नेशन थ्योरी का जायज़ा लेने की ज़रूरत महसूस न होती, अगर पाकिस्तान में ही सभी मुसलमान इकट्ठे रह लेते। बँगाली मुसलमानों का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में दूसरे मुसलमानों के साथ इकठ्ठा नहीं रह सका और ऐसे, 1971 में बांग्लादेश के नाम से एक और नेशन वजूद में आया।
* यह ज़रूरी नहीं कि अलग-अलग मज़हबों के लोग इकट्ठे नहीं रह सकते। यह भी ज़रूरी नहीं कि एक ही मज़हब को मानने वाले सभी लोग एक ही मुल्क में इकट्ठे रह सकें। पाकिस्तान में कितने ही सिन्धी मुसलमान, कितने ही बलोच मुसलमान भी अपने लिये अलग मुल्क का ख़ाब बुने बैठे हैं। यह टू-नेशन थ्योरी का हासिल है।
* मुस्लिम लीग का यह ख़्याल बहुत खोखला था कि मुसलमान अलग नेशन होने की वजह से हिन्दुओं के साथ नहीं रह सकते। असल बात तो सिर्फ़ ये थी कि उनको एक ऐसा मुल्क चाहिये था, जहाँ मुसलमान मेजोरिटी में हों, अक्सरियत हों। उनको लगता था कि मुस्लिम मेजोरिटी वाले मुल्क में उन्ही की सरकार बनेगी।
* पश्चिमी देशों के लोग आज मुसलमानों की इमीग्रेशन से, हिजरत से ख़ौफ़ज़दा हैं। जैसे भारत को तोड़ कर मुस्लिम लीग ने अलग मुस्लिम मुल्क़ बना डाला, क्या ऐसा ही पश्चिमी देशों में नहीं होगा? यही डर पश्चिमी देशों के कई लोगों को सता रहा है।
* अगर मुस्लिम लीग के मुसलमान भारत में इकट्ठे नहीं रह सकते थे, तो भारत से अलग होकर भी पाकिस्तान के अन्दर ही अमन क्यों नहीं हो पाया, शान्ति क्यों नहीं हो पाई? अलग-अलग मुल्क़ हो कर भी भारत और पाकिस्तान में अब तक दोस्ताना ताल्लुक़ क्यों नहीं बन पाये?
* हक़ीक़त यही है कि सियासी मुफ़ाद के लिये कुछ लोगों ने इस्लाम का नाम इस्तेमाल किया। यूनाइटेड इण्डिया में उनके राजनैतिक हित, सियासी मुफ़ाद पूरे नहीं हो पा रहे थे, जिस वजह से टू नेशन थेओरी को ईजाद किया गया। इसने न सिर्फ़ मुसलमानों को हिन्दुओं से अलग कर दिया, बल्कि मुसलमानों को भी दो मुल्कों में बाँट कर रख दिया, जो बाद में फिर तीन मुल्कों में बंट गये।
* अपने अन्दर के इन्सान को अगर हम ज़िन्दा रखें, तो हम सब इकट्ठे रह सकते हैं। नहीं तो इन्सानियत को बांटने की कोशिशों का कहीं भी अन्त नहीं है। फिर मुसलमान हिन्दुओं के साथ नहीं रह पायेंगे। शिया सुन्नियों के साथ नहीं रह पायेंगे। कथित upper castes हिन्दू दलितों के साथ नहीं रह पायेंगे। सिन्धी पंजाबियों के साथ नहीं रह पायेंगे। कोई भी एक ग्रुप किसी दूसरे ग्रुप के साथ नहीं रह पायेगा।
* मेरी ओर से सभी लोगों, सभी क़ौमों को शुभ कामनाएँ, best wishes. सब के लिये नेक तमन्नाएँ। अपनी बात मैं गुरु गोबिन्द सिंघ साहिब के कहे हुये इन अल्फ़ाज़ के साथ ख़त्म करता हूँ:-
कोऊ भइओ मुंडीआ संनिआसी
कोऊ जोगी भइओ
कोई ब्रहमचारी कोऊ जतीअनु मानबो ॥
हिंदू तुरक कोऊ राफसी इमाम शाफी
मानस की जात सबै एकै पहचानबो ॥