जगत सभ मिथिआ

नानक क़हत जगत सभ मिथिआ जिउ सुपना रैनाई॥ (सारंग महला 9, श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी)।

जगत मिथ्या है, नाशमान है। हक़ीक़त में इस का अपना अस्तित्व उसी प्रकार का ही है, जैसे किसी सपने का अस्तित्व होता है। रात को आए सपने के अस्तित्व के बारे में क्या कहा जाए? क्या उस का अस्तित्व है? क्या उस का अस्तित्व नहीं है? सपने का अस्तित्व हो कर भी वह अस्तित्व रहित है। सपना मिथ्या है। सपने में घटित घटना असलियत में घटित हुई ही नहीं, परंतु मन ने सपने में घटित घटना को असली मान लिया। इसीलिए, भयानक सपने से यह डर जाता है, दुख का सपना देख के दुखी हो जाता है और खुशी का सपना देख कर खुश हो जाता है। न कोई भयानक घटना घटी, न कोई दुखभरी घटना हुई, न ही खुशी की कोई बात हुई। केवल सपना आया, पर मन डर गया, दुखी हो गया या खुश हो गया। कुछ भी घटित नहीं हुया, पर मन ने डर, दुख या सुख को महसूस कर लिया।